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देश में बढ़ती बेरोजगारी और गरीबी के बजाय जिन्ना-पटेल पर हो रही राजनीति भारत के लिए खतरनाक होगी

-द प्रिंट, भारतीय राजनीति पर नज़र रखना जिनका पुराना शगल है उन्होंने इस शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस हिंदी ट्वीट को जरूर पढ़ा होगा— ‘वे ‘जिन्ना’ के उपासक है, हम ‘सरदार पटेल’ के पुजारी हैं. उनको पाकिस्तान प्यारा है, हम माँ भारती पर जान न्योछावर करते हैं.’ आप चाहें तो इसकी उपेक्षा कर दें या इसका समर्थन करें, आपकी मर्जी. या इसे सांप्रदायिकता भड़काने वाला बयान कहें,...

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पूंजीवाद के अंतर्गत वित्तीय बाज़ारों के लिए बैंक का निजीकरण हितकर नहीं

-न्यूजक्लिक, प्रख्यात अर्थशास्त्री, जॉन मेनार्ड केन्स के सबसे महत्वपूर्ण तर्कों में से एक यह था कि पूंजीवाद के अंतर्गत वित्तीय बाजारों का संचालन, गहराई तक त्रुटिपूर्ण होता है। इस तरह के बाजार अंतर्निहित रूप से एक ओर ‘उद्यम’ और दूसरी ओर ‘सट्टे’ में भेद कर पाने में ही असमर्थ होते हैं। याद रहे कि उद्यम वह होता है जिसमें किसी परिसंपत्ति को उसका स्वामी अपने पास इसलिए रखता है ताकि वक्त...

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उत्तर प्रदेश: योगी सरकार से नौकरियां मांगते युवा चुनावी तस्वीर में कहां हैं

-द वायर, उत्तर प्रदेश में चुनावी राजनीति के बीच युवा बेरोजगारी को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. इस महीने की शुरुआत में इलाहाबाद में युवाओं ने बेरोजगारी के खिलाफ सड़कों पर ताली-थाली के साथ ऐसी ही एक आवाज़ उठाई थी. 4 जनवरी की रात अचानक शहर के सलोरी क्षेत्र में हजारों युवाओं का हुजूम निकल पड़ा. मुद्दा था रोजगार और नौकरियां. प्रदर्शनकारी युवाओं का मानना है कि सरकार शायद गहरी नींद में...

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गांव में अपराध: क्या सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से फर्क पड़ता है?

-गांव सवेरा, ग्रामीण भारत में गरीबी के उन्मूलन और आर्थिक विकास हेतु अच्छी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच होना महत्वपूर्ण है। यह लेख, भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के 2004-05 और 2011-12 के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए दर्शाता है कि पक्की सड़कों से जुड़े गांवों के परिवारों में अपराध, श्रम बल की भागीदारी और पारिवारिक आय के सन्दर्भ में उन गांवों में रहने वालों की तुलना में बेहतर परिणाम पाए गए...

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मनरेगा निधि का आवंटन: मांग आधारित काम की गारंटी का भुगतान

-आइडियाज फॉर इंडिया, केंद्र ने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के लिए वित्त पोषण हेतु अतिरिक्त राशि के रूप में रुपये 25,000 करोड़ की मांग की है। अश्विनी कुलकर्णी ने आधिकारिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए सरल गणना के आधार पर यह तर्क दिया है कि वास्तविक निधि की आवश्यकता वास्तव में इससे बहुत अधिक है। चूँकि महामारी ग्रामीण आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, सरकार को मांग...

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