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पराली समस्या पर सरकारी प्रयास अव्यावहारिक, क्या है पर्यावरण हितैषी स्थायी समाधान?

डाउन टू अर्थ, 18 अक्टूबर  भारत सहित पूरी दुनिया के लगभग 80 प्रतिशत किसान धान की पराली जलाते हैं, जिससे गंभीर वायु प्रदूषण फैलता है। जो हर साल घनी आबादी और ज्यादा औद्योगिक घनत्व वाले भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मेंं अक्टूबर-नवंबर महीने मेंं हवा की गति कम होने और हिमालय से ठंडी हवा आने से बहुत ज्यादा गंभीर हो जाता है। इस वायु प्रदूषण समस्या के समाधान के लिए केन्द्र...

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जलवायु संकट: तीन से चार दिन पहले आ रहे शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात

डाउन टू अर्थ,10 अक्टूबर एक नई रिसर्च के हवाले से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते 80 के दशक से शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात हर दशक तीन से चार दिन पहले आ रहे हैं। गौरतलब है कि यह चक्रवात बेहद शक्तिशाली यानी श्रेणी 4 और 5 के होते हैं, जिनके दौरान हवाओं की गति 131 मील प्रति घंटा या उससे ज्यादा रहती है। यह रिसर्च हवाई विश्वविद्यालय, साउथर्न यूनिवर्सिटी...

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कठिन मौसम और बढ़ते पर्यटन के बीच बढ़ती लद्दाख की कचरे की समस्या

मोंगाबे हिंदी, 9 अक्टूबर केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख पिछले कुछ सालों में एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है। हर साल गर्मी के मौसम में यहां सैलानियों की भीड़ लगी होती है। सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया के विभिन्न भागों से पर्यटक यहां खासी तादाद में आते हैं।  जहां एक और पर्यटकों की संख्या और उनके लद्दाख में रुकने की अवधि बढ़ने से प्रदेश की आमदनी में इज़ाफ़ा हो...

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हिमाचल में स्क्रब टाइफस पीड़ितों की संख्या 1,000 पहुंची, 15 की मौत

डाउन टू अर्थ, 27 सितम्बर हिमाचल में इस साल स्क्रब टायफस के मामलों में रिकाॅर्ड बढ़ोतरी देखी गई है। पिछले साल के मुकाबले अभी तक दो गुणा से अधिक स्क्रब टायफस के मामले देखने को मिल चुके हैं। पिछले वर्ष 500 स्क्रब टायफस के मामले देखने को मिले थे, वहीं अभी तक संक्रमितों की संख्या 1 हजार से अधिक पहुंच चुकी है और 15 लोगों की जानें जा चुकी हैं। बरसात...

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भगियाओं की नई पीढ़ी ने अपने पेशे से मुंह मोड़ा , कच्छ में विलुप्त हो रहा मवेशियों के इलाज का पारंपरिक ज्ञान

इंडियास्पेंड, 25 सितम्बर कई साल पहले, जब कच्छ सूखे से जूझ रहा था, तो एशिया के सबसे बड़े खुले घास के मैदान बन्नी में सलीम मामा के गांव के लोगों ने और बेहतर जगह की तलाश में पलायन करना शुरू कर दिया। लेकिन सलीम मामा इनमें शामिल नहीं थे। उन्होंने गांव छोड़ने से इंकार कर दिया। सलीम ‘भगिया’ यानी वह एक ऐसे स्थानीय विशेषज्ञ थे, जिनसे बड़े पैमाने पर देहाती समुदाय...

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