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धन एवं बाहु-बल का तमाशा-- नवीन जोशी

संसद के उच्च सदन राज्यसभा भारतीय संघ के राज्यों का प्रतिनिधि सदन है. राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित जन-प्रतिनिधि अपने राज्य का प्रतिनिधि चुन कर उच्च सदन में भेजते हैं. चूंकि यह प्रतिनिधि दलीय से ज्यादा राज्य का माना जाता है, इसलिए विधायकों को पार्टी-व्हिप से बांधने की बजाय अपने विवेक या ‘अंतरात्मा की आवाज' से वोट डालने की छूट दी गयी. यही छूट कालांतर में राज्यसभा चुनाव में विधायकों की...

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आचार संहिता की प्रासंगिकता -- अनुपम त्रिवेदी

4 जनवरी को 5 राज्यों में चुनाव की अधिसूचना के साथ ही चुनाव आचार संहिता लागू हो गयी है. नियमानुसार राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और सरकारी महकमें से इस दौरान आदर्श आचार यानी ‘मॉडल कंडक्ट' की अपेक्षा की जाती है और नहीं मानने पर सजा का प्रावधान है. भारत में आचार संहिता के प्रयोग का आरंभ केरल में हुआ, जब वहां 1960 के विधानसभा चुनावों में चुनाव परिचालन के लिए राजनीतिक...

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अब खेल हो खुला फर्रुखाबादी - मृणाल पांडे

पिछले महीने से सरकार कभी अच्छे दिनों के पुराने सपने जगाती है, कभी देशभक्ति की दुहाई दे जनता से नोटबंदी के इन बुरे दिनों को झेल ले जाने का अनुरोध करती है। फिर भी जब खराब खबरें आना बंद नहीं होतीं, तो वह पटरी बदल लेती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब चुनावों की जनसभाओं में अब लुटियन की सरकारी दिल्ली को, पूर्व कांग्रेसनीत सरकार और उसके करीबी मीडिया को, और अंत...

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ब्रेक्जिट से बढ़ी दुनिया की बेचैनी - महेंद्र वेद

ब्रिटेन के लोगों ने आखिरकार 'ब्रेक्जिट" (ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने) का विकल्प ही चुना। लेकिन क्या यह अजीब नहीं लगता कि एक ऐसा देश, जिसने कभी तकरीबन आधी दुनिया को अपना उपनिवेश बनाकर उसका शोषण करते हुए अपने साम्राज्य को समृद्ध व शक्तिशाली बनाया था, आज उसने कायरतापूर्ण ढंग से यूरोप से अलग होने का फैसला किया? क्या यह भी एक विडंबना नहीं है कि एक ऐसा...

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न्यायपालिका को तो बख्श दें: एन के सिंह

फ्रांस के समाजशास्त्री अलेक्सी डे टॉक्विले और ब्रिटेन के राजनीतिक दार्शनिक जॉन स्टुअर्ट मिल, दोनों ने 25 साल के अंतराल में लोकतंत्र के दो नए खतरों के प्रति आगाह किया था। पहले का मानना था कि इसमें बहुमत के आतंक के शिकार व्यक्ति के पास बचने का कोई चारा नहीं होता। दूसरे ने इस भय की ओर इंगित किया था कि प्रजातंत्र मात्र एक शासन पद्धति न होकर असंगठित भीड़ की...

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