एक जमाना था, जब कक्षा से चुनावी भाषणों तक में ‘अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है?' जैसे जुमले सुनने को मिलते थे. भला हो राग दरबारी के लेखक श्रीलाल शुक्ल का, जिन्होंने इस उपन्यास के मार्फत आजादी के बाद हमारे बदहाल गांवों की असलियत दिखाकर इस पाखंड पर ऐसी चोट की कि पढ़ने-लिखनेवाले लोग इस भावुक और निरर्थक मुहावरे से बचने लगे. फिर ‘90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण...
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ऊंची इमारतों से झांकती समस्याएं -- अभिषेक कुमार सिंह
दुनिया में बढ़ते शहरीकरण के मद््देनजर, इमारतों के निर्माण के लिए ‘फ्यूचर इज वर्टिकल' यानी भविष्य आसमान की ओर देखने में है, यह जुमला काफी समय से कहा-सुना जा रहा है। नगरों के नियोजन और रखरखाव से जुड़े योजनाकारों का मत है कि भारत को भी अब ऊंची इमारतों के निर्माण के जरिए आवास की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। कई अन्य देशों की तरह भारत में भी यह चलन...
More »ऑटोमेशन से बदलेगी भारत में खेती की तस्वीर
विकसित देशों के मुकाबले भारत में अधिकतर फसलों की पैदावार प्रति एकड़ काफी कम है. इसका एक बड़ा कारण खेती में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल अब तक बहुत कम होना है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय कृषि क्षेत्र में यदि आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाये, तो फसलों की पैदावार में व्यापक पैमाने पर बढ़ोतरी हो सकती है. सेंसर, अॉटोमेशन और इंजीनियरिंग की अनेक विधाओं का इस्तेमाल करते...
More »प्रदूषित हवा के खिलाफ कदम-- प्रार्थना बोरा
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि 2016 के अंत में पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाई-ऑक्साइड के अनुपात में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। 2015 में यह वृद्धि पिछले दस वर्षों के औसत वृद्धि अुनपात से लगभग 50 फीसदी ज्यादा दर्ज हुई थी। एक अन्य रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की भी है, जो और भयावह निष्कर्ष पर पहुंचती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2016 में...
More »बंजर में तब्दील होती मिट्टी -- रमेश कुमार दूबे
जिस रफ्तार से मिट्टी की उर्वरता में ह्रास हो रहा है उसे देखते हुए आने वाले वर्षों में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य हासिल हो पाएगा इसमें संदेह है। मांग के अनुरूप अन्न पैदावार में बढ़ोतरी की चुनौती तो भविष्य की बात है, कुपोषण की व्यापकता तो हमें कब का घेर चुकी है। यही कारण है कि भरपेट खाने के बावजूद कमजोरी महसूस होती है। परिवार के बुजुर्ग यह शिकायत करते...
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