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स्वास्थ्य बीमा से महरुम हैं कचरा बीनने वाले, 33 प्रतिशत के पास जनधन खाते नहीं

-डाउन टू अर्थ, देश के बड़े शहरों में कचरा बीनने वालों के पास पांच फीसदी से भी कम स्वास्थ्य बीमा है, जबकि 79 प्रतिशत सफाई साथियों के जनधन खाते नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से 25 जनवरी 2022 को कचरा बीनने वालों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का बेसलाइन विश्लेषण जारी किया गया। यूएनडीपी की प्लास्टिक मैनेजमेंट यूनिट और पॉलिसी यूनिट ने यह रिपोर्ट तैयार की है। कचरा बीनने वालों...

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बुंदेलखंड में कुपोषण की समस्या पर नीति निर्माताओं को जरूर ध्यान देना चाहिए!

हाल की मीडिया रिपोर्ट्स यह बताती हैं कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र को लगभग रु. 6,300 करोड़ की परियोजनाओं की घोषणाएं की गई हैं, जिनमें झांसी में टैंक रोधी मिसाइलों के प्रणोदन प्रणाली के लिए 400 करोड़ रुपये का संयंत्र भी शामिल है. 18 नवंबर, 2021 को झांसी नोड (उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे से संबंधित) में पहली परियोजना के लिए नींव...

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गोवा से महाराष्ट्र तक, ‘नॉन-ट्रांसमिसेबल’ बीमारियों के बोझ के बारे में क्या कहती हैं कोविड मौतें

-द प्रिंट, भारत में कोविड-19 का पहला केस जनवरी 2020 में केरल से सामने आया था. दो साल बाद अनुमान के मुताबिक़ महामारी में राज्य के हर 1 हजार लोगों में से एक की मौत हुई. और ये सिर्फ केरल की बात नहीं है. क्राउडसोर्सिंग प्लेटफॉर्म कोविड19भारत (जो राज्यवार स्वास्थ्य बुलेटिन्स से आंकड़े इकट्ठा करता है) के मुताबिक, कम से कम ऐसे चार राज्य और केंद्र-शासित क्षेत्र और हैं- गोवा, महाराष्ट्र,...

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कोविड-19 की तीसरी लहरः कैसी है झारखंड की तैयारी, क्या है गांवों का हाल

-डाउन टू अर्थ, जर्मनी में रहनेवाली एक महिला के परिजन देवघर में रहते हैं। उनके पिता बीते 6 जनवरी को कोविड पॉजिटिव पाए गए उन्हें हार्ट से संबंधित बीमारी भी थी। स्थानीय डॉक्टर ने कहा कि आप रांची में किसी आइसोलेशऩ सेंटर में चले जाइए, ताकि जरूरत होने पर बेहतर इलाज मिल सके। लेकिन उन्हें इस सुविधा की जानकारी नहीं मिल सकी।  हालांकि रांची के डोरंडा में आइसोलेशन सेंटर सेंटर है। इसके...

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पीएमजेएवाई का सच: “महंगा साबित हो रहा है बीमा-आधारित हमारा मॉडल”

-डाउन टू अर्थ, इस महामारी से उपजे भारी तनाव ने दुनियाभर में स्वास्थ्य प्रणाली की खामियों को उजागर कर दिया है। तमाम देशों ने अपनी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए तमाम तरीके अपनाए हैं। औद्योगीकृत पश्चिमी देश बड़े पैमाने पर संकट से निपटने के लिए उपचारात्मक कदमों पर निर्भर हैं, जिसकी वजह से रोग निवारक सेवा के लिए कुछ खास जगह नहीं बचती। विकासशील देशों में प्राथमिक स्वास्थ्य...

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