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बीजेपी का चुनावी पोस्टर ‘श्रमिकों को पहुंचाया अपने घर’ बढ़ा रहा अजमेरिना और रामचंद्र महतो का दुःख

-न्यूजलॉन्ड्री, बिहार चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का एक पोस्टर जगह-जगह लगा हुआ है. पोस्टर पर ‘श्रमिकों को पहुंचाया अपने घर बिहार’ लिखा है और उसके बगल में प्रधानमंत्री मोदी की एक मुस्कुराती हुई तस्वीर है. पोस्टर के नीचले हिस्से में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत बिहार बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं की तस्वीरें लगी हुई हैं. बीजेपी ने बिहार के वोटरों...

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Covid Lockdown में बेचे गए नकली कीटनाशकों ने कश्मीरी सेबों की गुणवत्ता और कीमत गिरा दी

-द प्रिंट, कोविड-19 लॉकडाउन का कश्मीर में सेब उद्योग पर अप्रत्याशित प्रतिकूल असर पड़ा है. गुणवत्ता जांच में कमी, बाजार में नकली और घटिया कीटनाशकों की भरमार आदि ने इस वर्ष अधिकांश पैदावार पर, दागी होने की वजह से, गुणवत्ता के लिहाज से ‘बी कैटेगरी’ का ठप्पा लगवा दिया है. दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में मुख्य फल मंडी के अध्यक्ष अशरफ वानी के अनुसार इस क्षेत्र में हर साल लगभग 3.5...

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खदानों में काम करने वाले श्रमिकों की व्यावसायिक सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य की बात

इस साल (31 अगस्त तक) देश के विभिन्न कोयला खदानों में लगभग 24 जानलेवा दुर्घटनाएँ और 47 गंभीर दुर्घटनाएँ हुई हैं. इसी तरह, 18 जानलेवा दुर्घटनाएँ और 13 गंभीर दुर्घटनाएँ गैर-कोयला खदानों में इस समय अवधि में हुई हैं. कोविड-19 के चलते आई आर्थिक मंदी के कारण इन खदानों में कम मांग और उत्पादन की आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान के कारण पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष दुर्घटना के आंकड़े...

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लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को रोका जा सकता था

-द वायर, अप्रैल-मई 2020 में राष्ट्रीय लॉकडाउन से लोगों के रोजगार और आय पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा. उदाहरण के लिए, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सेंटर फॉर इकोनॉमिक परफॉरमेंस के द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग आधे शहरी कामगारों ने उस अवधि के दौरान कोई आय अर्जित नहीं की. कई सार्वजनिक सेवाएं भी कम या बंद कर दी गईं. इसमें नियमित स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं. लॉकडाउन के दौरान...

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लॉकडाउन से बेरोज़गार एमबीए, इंजीनियर मिट्टी ढो रहे हैं मनरेगा में

-सत्यहिंदी, कोरोना लॉकडाउन की वजह से देश में करोड़ों लोगों की रोज-रोटी छिनी, इसमें असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की तादाद सबसे ज़्यादा है। पर ऐसा नहीं है कि इसकी मार सिर्फ़ उन्हीं पर पड़ी है। पढ़े-लिखे, एअर कंडीशन्ड ऑफ़िसों में काम करने वाले लोगों की भी नौकरी गई है। इसमे वे लोग भी शामिल हैं जो इंजीनियर हैं, एमबीए हैं, जिन्होंने संघर्ष कर गाँव की ग़रीबी से निजात पाई और शहरों...

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