भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था पर नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की राय सबसे जुदा होती है। इन दोनों में वह मानव विकास के मायने ढूंढ़ते हैं। नई सरकार की चुनौतियों व संभावनाओं और मौजूदा सरकार की उपलब्धियों तथा खामियों पर उनसे दैनिक हिन्दुस्तान के ललिता पणिकर और गौरव चौधरी ने विस्तृत बातचीत की। बातचीत के अंश- आर्थिक मंदी के बीच नई सरकार की क्या प्राथमिकताएं होनी चाहिए? कुछ लंबे समय के...
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झारखंड-बिहार में सबसे ज्यादा भूखे
रांची: भोजन के अधिकार अभियान की दो दिवसीय पूर्वी क्षेत्रीय बैठक सोमवार को हुई़ बैठक में अर्थशास्त्री प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने कहा कि झारखंड के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून सबसे जरूरी है़ झारखंड और बिहार में सबसे ज्यादा भूखे हैं. झारखंड सरकार ने इस कानून को लागू करने के प्रति रूची नहीं दिखायी है़. यूआइडी के लिए जिस तरह से सरकार ने कोशिश की थी, उस तरह की कोशिश इस...
More »भोजन की गारंटी, पर एक बार भी नहीं मिला राशन
पटना: पहली फरवरी से लागू राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ सभी चयनित परिवारों को नहीं मिल रहा है. योजना लागू होने के तीन माह बीत गये, लेकिन अधिकतर परिवारों को एक बार भी राशन नहीं मिला है. अप्रैल में अनाज आवंटित तो हुआ, लेकिन कार्ड नहीं होने से राशन मिलने में परेशानी हुई. बाद में जिला प्रशासन ने सूची के आधार पर राशन बांटने का निर्देश दिया. सूची के आधार...
More »गांवों के विकास पर अरबों का सालाना खर्च- आर के नीरद
मित्रों, केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, ग्रामीण विकास पर सब का जोर है. गांवों के विकास से ही देश का विकास संभव है, यह सभी जानते हैं. देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, यह सच भी सब को पता है. जाहिर है कि विकास के सवाल पर जब भी बात होगी, गांव उसका सबसे बड़ा विषय होगा. आजादी से अब तक गांवों के विकास के लिए सरकार ने अनेक...
More »विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता
चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...
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