भारतीय जनतंत्र में अस्मिता की राजनीति का प्रभाव काफी समय से रहा है. पिछले कुछ वर्षों में ऐसा लगने लगा था कि शायद इसका युग अब समाप्त हो जायेगा. लेकिन अब इसके विकृत रूप के उभार की संभावनाएं बढ़ती दिख रही हैं. बिहार-बंगाल में दंगे, राजपूती शान के नाम पर पद्मावत फिल्म के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन, आरक्षण के लिए विभिन्न जातियों का आंदोलन, दलितों का राष्ट्रव्यापी बंद और राष्ट्रवाद व धर्म...
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जल संकट के लिए तैयार रहें-- आशुतोष चतुर्वेदी
र्मी शुरू हो गयी है. हम सब जानते हैं कि हर साल की तरह हमारे गांव, कस्बे और शहर पानी की कमी से जूझेंगे. लेकिन, इस विषय में हम तभी सोचते हैं, जब समस्या हमारे सिर पर आ खड़ी होती है. न तो सरकारों की ओर से कोई ठोस पहल होती है और न ही समाज की ओर से कोई अभियान छेड़ा जाता है. समस्या केवल कम बारिश की नहीं...
More »संघवाद पर लगी ताजा चोट--डॉ टीएम थॉमस इसाक
राजव्यवस्था का एक सामान्य सिद्धांत है कि वित्तीय संसाधनों का सबसे सही आवंटन सरकार का वह स्तर करता है, जो लाभुकों से सर्वाधिक निकटस्थ होता है, जबकि संसाधनों के बेहतरीन संग्रहण की अपेक्षा सरकार के उस स्तर से की जाती है, जो करदाताओं से सर्वाधिक सुदूर स्थित है. इसलिए सभी सहयोगात्मक संघीय व्यवस्थाओं में कराधान की शक्ति सामान्यतः केंद्र सरकार के पास केंद्रित रहती है, जबकि व्यय का भार...
More »जन-आंदोलनों का विचार-- अनुज लुगुन
साल 1930 में मार्च महीने की 12 तारीख थी. जैसे हर रोज सूरज निकलता है, वैसे ही उस दिन भी सूरज निकलनेवाला था, फिर भी उन लोगों को सूरज के उगने की प्रतीक्षा थी. यद्यपि उन्हें मालूम था कि वे सरकार के विरुद्ध कदम उठा रहे हैं और उसका परिणाम यातनामयी होगा, लेकिन सबने प्रण कर लिया था कि यदि कदम नहीं बढ़े, यदि आवाज नहीं उठी, तो उनके जीवन...
More »इस स्वायत्तता से क्या होगा -- रोहित कौशिक
हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जेएनयू, बीएचयू, एएमयू समेत देश के बासठ उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के अनुसार पांच केंद्रीय विश्वविद्यालयों, इक्कीस राज्य विश्वविद्यालयों, चौबीस डीम्ड विश्वविद्यालयों तथा दो निजी विश्वविद्यालयों को अपने फैसले लेने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। सरकार का दावा है कि इन संस्थानों की शैक्षिक गुणवत्ता बनाए रखने के...
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