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धातु से जुड़े विनाश की कहानी : आउट ऑफ दिस अर्थ- सच्चिदानंद सिन्हा

गरीबों के हलके तसले और पतीलों से लेकर विशालकाय वायुयानों की काया बनाने वाले अल्युमिनियम के उत्पादन और विपणन के पीछे घोर शोषण और विध्वंस की जो गाथा छिपी है, उससे हममें से बहुत थोड़े लोग ही वाकिफ होंगे.  आधुनिक औद्योगीकरण आदम के आदिम अभिशाप की अभिव्यक्ति भर नहीं है. यह मनुष्य के परिवेश के बार-बार नष्ट होने, इससे विस्थापित होकर आजीविका की तलाश में संसार भर में भटकने और अमानवीय स्थितियों...

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लोकतंत्र का लट्ठ- रेयाज उल हक (तहलका)

भट्टा-पारसौल में जो हुआ और जिस अंदाज में हुआ उससे साफ है कि उत्तर प्रदेश सरकार को असहमति और विरोध के लोकतांत्रिक अधिकार की जरा भी परवाह नहीं. रेयाज उल हक की रिपोर्ट अगर यह लोकतंत्र है तो भट्टा-पारसौल के लोगों ने इसका मतलब देखा और महसूस किया है. देश की संसद से बमुश्किल 70 किलोमीटर दूर बसे 6000 जनों की आबादी वाले इस गांव ने लोकतंत्र को गोलियों के रूप...

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आंदोलन के बाद उठे सवाल : महेश रंगराजन

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन ने जनता के मन में जगह बना ली और सरकार को लोकपाल विधेयक के संबंध में चुस्ती-फुर्ती दिखानी पड़ी। सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और उसे नियंत्रित करने के श्रेष्ठ तरीकों के बारे में सक्रिय बहस जारी है। अन्ना के अहिंसक आंदोलन ने युवाओं और आमतौर पर गैरराजनीतिक रुझान रखने वाले मध्यवर्ग को भी प्रभावित किया। यह भी उल्लेखनीय है कि नए विधेयक की प्रक्रियाएं...

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राजस्थान में आदिवासी अधिकारों की अनदेखी

सामाजिक अधिकारिता के कानूनों के होने भर से किसी समुदाय के सशक्तीकरण की गारंटी होती तो राजस्थान का आदिवासी समुदाय ना तो शिक्षा के बुनियादी अधिकार से वंचित रहता और ना ही अपनी जीविका के जरुरी साधन जमीन से। मिसाल के लिए इन तथ्यों पर गौर करें।राजस्थान की कुल आबादी में आदिवासी समुदाय की तादाद १२.४४ फीसदी है और साक्षरता-दर है ४४.७ फीसदी जबकि सूबे की औसत साक्षरता दर इससे कहीं ज्यादा ऊंची(६१.०३ फीसदी) है। क्या शिक्षा...

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100 नहीं, 32 दिन मिलता है काम- ए. जयजीत

भोपाल. क्या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) वास्तव में 100 दिन की रोजगार गारंटी सुनिश्चित करता है? कम से कम प्रदेश में तो बिल्कुल नहीं। यह खुलासा राज्य योजना आयोग के एक ताजा अध्ययन से हुआ है। इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में केवल एक फीसदी परिवारों को ही पूरे 100 दिन का रोजगार नसीब हो पाया है। औसतन देखें तो एक साल में एक परिवार को 32 दिन...

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