नरेंद्र मोदी आखिर किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, और भारतीय राजनीति में उनके उदय के क्या मायने हैं? 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों का बोझ अब भी उनके कंधों पर है। ऐसे में, सांप्रदायिक राजनीति के ऐतिहासिक उभार के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री का राष्ट्रीय पटल पर उदय होते देखना खासा दिलचस्प रहेगा। संघ परिवार के वफादार और हिंदू मध्य वर्ग का एक बड़ा हिस्सा आज अगर उनका भक्त बना है,...
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‘जंगल हम-आपका, नहीं किसी के बाप का ’- अविनाश कुमार चंचल
अवधेश की उम्र का हिसाब रखने के लिए न तो उसके पास मां है और न बाप. शायद इसलिए हमने उससे उसकी उम्र जाननी चाही तो उसने तपाक जवाब दिया, ‘चौथी कक्षा में पढ़ता हूं.’ चौथी कक्षा ही उसकी उम्र को बयां करती है. झट हम भी हिसाब लगाते हैं- दस साल. अवधेश सिंह पनिका दस साल का बच्चा है. आदिवासी परिवार में पैदा हुआ. मध्य भारत के घने जंगलों से घिरे...
More »विश्व टीबी दिवस : 95 फीसदी टीबी विकासशील देशों में
दुनियाभर में प्रति वर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस का आयोजन किया जाता है. यह मौका एक बार फिर दुनिया का ध्यान एक ऐसी बीमारी की ओर ले जाने का है, जिससे मरनेवाले 95 फीसदी लोग विकासशील देशों से हैं. इस बीमारी से ग्रसित लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच नहीं होने के चलते अभी भी सालाना तीस लाख से ज्यादा लोगों को बचा पाना एक चुनौती बनी हुई...
More »जंगल के असल दावेदार- विनय सुल्तान
जनसत्ता 19 मार्च, 2014 : पिछले साल की दो घटनाएं इस देश में जल, जंगल और जमीन की तमाम लड़ाइयों पर लंबा और गहरा असर छोड़ेंगी। पहली घटना दिल्ली से दो हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नियमगिरि की है। यहां ग्रामसभाओं ने एक सुर में अपनी जमीन ‘वेदांता’ के हवाले करने से इनकार कर दिया। इसके बाद वेदांता कंपनी को नियमगिरि छोड़ना पड़ा। नियमगिरि जल, जंगल और जमीन की...
More »पार्टी की राजनीति ने गांव की एकता को तोड़ दिया है : राधा भट्ट
गांधी और उनके ग्राम स्वराज के सपने पर नयी दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष और प्रसिद्ध गांधीवादी राधा भट्ट्र से पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह ने बातचीत की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश : अक्सर इस बात पर चर्चा होती है कि भारत गांवों का देश है, देश की प्रगति तभी संभव होगी जब गांवों की प्रगति होगी? लेकिन वास्तविकता के धरातल पर इस चर्चा को कितनी जगह मिल पायी...
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