राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक से होते हुए भारतीय जनता पार्टी में महासचिव का पद संभाल चुके केएन गोविंदाचार्य पिछले कई सालों से पार्टी से छुट्टी पर चल रहे हैं. वह राजनीति की मुख्यधारा से भले अलग हो गये हों, पर उनकी छवि देसी चिंतक -विचारक की है. उनके पास भारत को देखने-समझने का अपना ‘स्वदेशी' नजरिया है. हाल ही में गोविंदाचार्य से बातचीत की प्रभात खबर डॉट कॉम के...
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सामाजिक, आर्थिक व जातीय जनगणना : समावेशी जुबान, मंशा अनजान!
आजादी के बाद भारत में गरीबी रेखा तय करने की दिशा में उठाये गये विभिन्न कदमों की सूची में पिछले कुछ वर्षो के दौरान संचालित सामाजिक, आर्थिक व जाति सर्वेक्षण का महत्वपूर्ण स्थान है. इसमें पहली बार किसी परिवार की सामाजिक पहचान को तरजीह दी गयी है. देश में लंबे अरसे से ऐसी मान्यता रही है कि गरीबी की मार कुछ सामाजिक श्रेणियों को ज्यादा ङोलनी पड़ती है, जिनमें से...
More »बिजली बेशुमार, नहीं हैं खरीदार
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। राज्यों में बिजली कटौती की समस्या के लिए जो दवा सरकार अभी तक बताती रही है अब वही दर्द का कारण बन गई है। हाल फिलहाल तक केंद्र सरकार राज्यों पर बिजली कंपनियों के साथ लंबी अवधि का खरीद समझौता करने का दबाव बनाती रही है। देश के अधिकांश राज्यों ने दर्जनों बिजली कंपनियों के साथ इस बारे में समझौता भी किया। मोटे तौर पर राज्यों को...
More »वायदे पूरे होने का इंतजार- जगदीप छोकर
प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव से पहले भ्रष्टाचार, गवर्नेंस, काला धन इत्यादि मुद्दों पर कदम उठाने के तमाम वायदे किए थे। अब उनकी सरकार के एक साल पूरे होने के मौके पर यह सही अवसर है, जब कुछ खास मुद्दों पर उनके कामकाज का विश्लेषण किया जाए। सबसे पहले चुनाव सुधार की बात। सूचना के अधिकार और चुनाव सुधार का गहरा रिश्ता है। दरअसल, जब तक मतदाताओं के सामने सभी राजनीतिक...
More »बिजली का हाल कदम तो उठे, अब रोशनी का इंतजार- सुहेल हामिद
देश में बिजली और मांग के बीच का अंतर 3.6 फीसदी देखने में भले ही कम लगता हो, लेकिन इसे पूरा करने की राह इतनी आसान भी नहीं है। यह अंतर तब है, जब इस साल बिजली उत्पादन 8.4 फीसदी बढ़ा है। देश के कई हिस्सों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति आज भी एक सपना है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एनडीए सरकार ने...
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