इस बार मॉनसून के सामान्य से कमजोर रहने की खबरों ने चिंता बढ़ा दी है. इसका नकारात्मक असर महंगाई रोकने के प्रयासों पर होगा. मॉनसून पर सरकार का जोर नहीं चलता, लेकिन जब पहले से मालूम हो कि एक संकट की संभावना है, तो उससे निपटने के लिए पहले से उपाय करने होंगे. एक तरफ जहां कृषि उत्पादन में संभावित कमी का पहले से अंदाजा लगा कर समय रहते आयात करके...
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4200 संस्थाएं ही कर रहीं नियमित अंशदान
पटना : राज्य के पांच हजार से अधिक व्यावसायिक प्रतिष्ठान अपने कर्मचारियों का कर्मचारी राज्य बीमा (इएसआइ) नहीं करा रहे हैं. इस कारण कम आयवाले कर्मचारी सामाजिक सुरक्षा लाभ से वंचित हैं. गैरसरकारी क्षेत्र के 15 हजार रुपये या इससे कम मासिक आमदनीवाले करीब 1 लाख 58 हजार कर्मचारी इस दायरे में आ सक ते हैं. बिहार में निगम से अब तक करीब आठ हजार संस्थाओं ने ही निबंधन कराया है....
More »गरीबी और प्रधानमंत्री मोदी- विकास नारायण राय
जनसत्ता 30 मई, 2014 : भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने की औपचारिकता के बाद मोदी ने संसद के केंद्रीय हाल से संबोधन में अपनी सरकार को गरीबों, युवाओं और स्त्रियों को समर्पित करार दिया। कॉरपोरेट जगत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चहेते ‘चायवाले’ के लिए इस दिखावे को अधिक दिनों तक निभाना टेढ़ी खीर ही होगी। गरीबों को लेकर मोदी का नवउदारवादी ट्रैक रिकार्ड सर्वाधिक संदेहास्पद रहा है।...
More »विकास के मॉडल का सवाल- के पी सिंह
जनसत्ता 22 मई, 2014 : चुनाव प्रचार के दौरान विकास के बहुतेरे मॉडल विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की ओर से प्रस्तुत किए गए। इससे पहले के चुनावों में भी विकास का कोई न कोई खाका पेश करके राजनीतिक दल मतदाताओं का विश्वास हासिल करते रहे हैं। इसके बावजूद ग्रामीण और दुर्गम पहाड़ी अंचलों में अधिकतर नागरिक आज भी स्वच्छ पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे...
More »दौलत के साथ ही बढ़ी गैर-बराबरी- सत्येंद्र रंजन
शायद यह अतिरंजना हो, लेकिन पश्चिमी मीडिया में थॉमस पिकेटी को नया कार्ल मार्क्स कहा गया है। ऐसा उनके प्रशंसकों ने तो संभवतः कम कहा है, लेकिन उन लोगों को उनमें मार्क्स की छाया ज्यादा नजर आई है, जो गैर-बराबरी का मुद्दा उठते ही खलबला जाते हैं। उनकी परेशानी का सबब यह है कि पिकेटी ने अपनी बहुचर्चित किताब 'कैपिटल इन ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी' में आमदनी और धन की विषमता को...
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