इसका स्वार्थ, उसका स्वार्थ. तेरा स्वार्थ, मेरा स्वार्थ. सबका स्वार्थ अलग-अलग हो सकता है. लेकिन, सबका सच एक ही होता है. दिक्कत यह है कि शोर में सच कहीं खो गया है. भांति-भांति की आवाजों में इस सच को खोज पाना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा है. यह मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं. बस, शोर को बड़ा एकाग्र होकर सुनना होगा, जैसे नाद योग या नाद साधना...
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अपनी तबाही रचते शहर- अनिल पद्मनाभन
भारत उन 163 देशों की सूची में सबसे ऊपर है, जिनके बाशिंदे हर साल सबसे अधिक बाढ़ की मुसीबतें झेलते हैं। हाल के दिनों में चेन्नई, श्रीनगर, मुंबई जैसे शहरों में सैलाब से तबाही का जो मंजर हमने देखा, उसके लिए बहुत हद तक दोषी हमारा गैर-जिम्मेदाराना रवैया और अनियोजित शहरीकरण है। मिन्ट के डिप्टी मैनेजिंग एडिटर अनिल पद्मनाभन का विश्लेषण चेन्नई में आई बाढ़ अब उतार पर है। इस त्रासदी...
More »130वें पायदान पर!
भारत में धन तो बहुत बढ़ा है, लेकिन इस देश का नागरिक अपनी स्वतंत्रताओं के मामले में कितना आगे बढ़ा है? छह दशक पहले भारतीय अर्थव्यवस्था पौने तीन लाख करोड़ रुपये की थी, जो आज 57 लाख करोड़ रुपये की हो चुकी है. लेकिन, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होते भारत में क्या उन लोगों की जीवन-स्थितियां भी इसी तेजी से बेहतर हुई हैं, जिनकी आंखों से आंसू...
More »इस साल 7.5 फीसदी के आसपास रहेगी अर्थव्यवस्था में संवृद्धि : जेटली
नयी दिल्ली : दूसरे तिमाही की जीडीपी से उत्साहित वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि मौजूदा वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पिछले साल की 7.3 प्रतिशत की वृद्धि दर से बेहतर रहेगी. वित्त मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक जीडीपी वृद्धि 2015-16 में 7.5 प्रतिशत के आसपास रहेगी. जेटली ने कहा, ‘मुझे लगता है कि दूसरी तिमाही के आंकडे हमें संतोष की भावना देते हैं. हम...
More »57 साल में 225 गुना बढ़ी सैलरी..- धर्मेन्द्रपाल सिंह
करीब पौने दो साल की मशक्कत के बाद केंद्र द्वारा गठित सातवें वेतन आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी है उससे भारत सरकार के सैंतालीस लाख कर्मचारियों और बावन लाख पेंशनभोगियों को सीधे-सीधे लाभ पहुंचेगा। परंपरा के अनुसार मामूली कतर-ब्योंत के बाद देश भर की राज्य सरकारें, स्वायत्तशासी संस्थान और सरकारी नियंत्रण वाली फर्म भी वेतन आयोग को अपना लेती हैं। इस हिसाब से इसका असर संगठित क्षेत्र के दो करोड़...
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