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मौत आती है पर नहीं आती - अनुराग चतुर्वेदी

'मरते हैं आरजू में मरने की/मौत आती है पर नहीं आती।" 7 मार्च 2011 को अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मुकदमे का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने मिर्जा गालिब के इस शे"र को याद किया था। सोमवार को जब अरुणा ने आखिरी सांस ली, तब काटजू ने एक बार फिर यह शे"र दोहराया। इस दर्दनाक कहानी की शुरुआत 26 नवंबर 1973 को होती...

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कब पूरा होगा सार्वभौम टीकाकरण का लक्ष्य ?

क्या पाँच साल और इससे कम उम्र के बच्चों की मौत में दो तिहाई कमी करने के सहस्राब्दि विकास लक्ष्य का एक निशान सरकार 2015 तक पूरा कर लेगी, जैसा कि परिवार स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है ? एनुअल हैल्थ सर्वे के नवीनतम तथ्य मंत्रालय के इस विश्वास के पूरा होने पर आशंका जगा रहे हैं। साल 2008-2013 के बीच पाँच साल और इससे कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में...

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जिसका खाता, बस उसी को लाभ - मोहन गुरुस्‍वामी

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन नई सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लॉन्च की हैं। इनमें दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा और पेंशन योजनाएं शामिल हैं, जिनके मार्फत समाज के ऐसे वंचित-असंगठित तबके को लाभान्वित करने का लक्ष्य है, जिन तक अभी तक ऐसी योजनाओं के लाभ नहीं पहुंच पाए थे। लेकिन इसमें एक पेंच है। योजनाओं का लाभ वे ही लोग उठा सकेंगे, जिनका अपना एक बैंक खाता हो। हकीकत...

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कितने काम का प्रधानमंत्री बीमा

नरेंद्र मोदी सरकार ने 12 रुपये प्रीमियम में दुर्घटना बीमा और 330 रुपये प्रीमियम में जीवन बीमा शुरू किया है. यानी, साल में 342 रुपये खर्च करके दो लाख रुपये का दुर्घटना बीमा (प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना) और इतनी ही रकम का जीवन बीमा (प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना) लिया जा सकता है. बैंकों के जरिये शुरू हुई इस योजना के लिए इतना कम प्रीमियम किसी को भी लुभा...

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सरकार नहीं, समाज गढ़ता है श्रेष्ठ संस्थान- हरिवंश

अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...

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