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तीस लाख मतदाता चाहें भी तो इस चुनाव में मतदान नहीं कर सकते- आखिर क्यों, पढ़िए इस एलर्ट में !

‘वोट इंडिया वोट' के नारे के साथ एक सरकारी वेबसाइट पर लिखा है- ‘ मतदान प्रक्रिया में भाग लें, मतदाता होने पर गर्व महसूस करें.' लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि भारत की एक बड़ी कामगार आबादी चाहे तो भी वोट नहीं कर सकती ? ऐसे कामगारों में एक नाम आता है ईंट भट्ठे के मजदूरों का ! इस बार ईंट भट्ठे पर काम करने वाले तकरीबन 30 लाख मजदूर अपने...

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राजस्थान के आदिवासी भील किसी भी दल की प्राथमिकता में क्यों नहीं हैं

चित्तौड़गढ़: खाट पर पड़े ढेरों फटे कपड़े, कुछ बर्तन, बुझा चूल्हा, पीपे में थोड़े से सूखे आटे के साथ रखी कुछ रोटी और लोहे के संदूक के अलावा इस खपरैल ओढे ‘घर' में कुछ नहीं है. चूल्हे के पास ही तीन महीने पहले एक बेटी को जन्म देने वाली गोपी भील (40) दर्द से कराह रही हैं क्योंकि उनका प्रसव घर पर ही हुआ और उसके बाद उनकी देखभाल एक जच्चा...

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प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत दो पायदान फिसला, चुनाव का समय पत्रकारों के लिए बेहद ख़तरनाक

नई दिल्लीः मीडिया की आजादी से संबंधित ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स' की सालाना रिपोर्ट में प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान खिसक गया है. 180 देशों में भारत 140वें स्थान पर है. गुरुवार को जारी इस रिपोर्ट में भारत में चल रहा चुनाव प्रचार का यह दौर पत्रकारों के लिए खासतौर पर सबसे ख़तरनाक वक्त के तौर पर चिह्नित किया गया है. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी ‘विश्व प्रेस...

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सभी राजनीतिक दलों को आरटीआई क़ानून को बचाने का संकल्प लेना चाहिए

मैं सभी राजनीतिक दलों से कहता रहा हूं कि वे वोट मांगने से पहले यह वादा करें कि सत्ता में आने के बाद वे सूचना के अधिकार कानून को मजबूती से लागू करेंगे. अब तक केवल कांग्रेस ने मेरी बात का जवाब दिया है. अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने ‘आरटीआई कानून को मजबूत करने' का वादा करते हुए कहा है कि वह आरटीआई अधिनियम की मूल भावना के अनुरूप समाज के...

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आंबेडकर को जितना अस्वीकार वर्तमान राजनीति ने किया है, उतना किसी और ने नहीं किया

हमारे समय के सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों ने बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की प्रासंगिकता बढ़ा दी है. इधर हाल के कुछ वर्षों में डॉक्टर आंबेडकर को पढ़ने और समझने की चेतना विकसित हुई है. अब उन्हें कोई अनदेखा नहीं कर सकता है. भाजपा हो, कांग्रेस हो या मार्क्सवादी पार्टियां- डॉक्टर आंबेडकर के बिना वे चुनावी वैतरणी नहीं पार कर सकती हैं. लेकिन क्या डॉक्टर आंबेडकर को केवल चुनाव जीतने के लिए...

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