नई दिल्ली. आज अर्थ डे है। दुनियाभर में धरती को बचाने की कोशिशें हो रही हैं। 1970 में छोटे से समूह अर्थ डे नेटवर्क ने अमेरिका ने 22 अप्रैल को 'पृथ्वी दिवस घोषित किया। संयुक्त राष्ट्र ने 2009 में 22 अप्रैल को 'अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस' के रूप में मान्यता दी। धरती पर बढ़ रहे कचरे, प्रदूषण, विलुप्त होते जीव-जंतु और पेड़-पौधों पर मंडरा रहे खतरों के प्रति जागरुकता पैदा करना इसका मुख्य उद्देश्य...
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आबादी बढ़ी, सिमटता गया योजनाओं का दायरा
सीकर. सीकर जिले की आबादी हर साल दो लाख 67 हजार तो बढ़ रही है, लेकिन बढ़ती आबादी के बीच जिन बुनियादी सुविधाओं की जरूरत हैं, वो आज भी नहीं मिल पाई है। बात चाहे सड़क की हो, पेयजल निकासी की या फिर पार्किग व स्ट्रीटलाइट की। यह स्थिति हमें इसलिए भी सोचने पर मजबूर कर रही है कि हर जेब में मोबाइल, घरों में टीवी, फ्रिज और वाहन की सुविधा लगातार...
More »जहां बरसता है बादल, बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं लोग-विजय मनोहर तिवारी
चेरापूंजी में सबसे ज्यादा बारिश होती है। फिर भी यहां पीने के पानी का संकट है। इसलिए क्योंकि लोगों की घरों में पानी बचाकर रखने की आदत नहीं है। यहां पहाड़ ही पानी का जरिया हैं। बहती धाराओं के नीचे बनाए गए कुंड या इनके नीचे खासतौर पर रखी टंकियों में पानी जमा होता है। फिर पीवीसी पाइपों से सीधे घरों में पहुंचता है। स्थानीय निवासी 50 वर्षीय केनी का सवाल...
More »रेत की रग-रग में सहेज लेते हैं पानी की बूंदें
जयपुर/जैसलमेर. जैसलमेर में लोग रेत की रग-रग में पानी की बूंदें सहेजना जानते हैं। पानी की हर बूंद के उपयोग की परंपरा यहां सदियों पुरानी है। लोग खाट पर बैठकर नहाते हैं। नीचे इकट्ठा किए पानी को घर व बर्तन धोने जैसे कामों में लेते हैं। तीन तरह का पानी रखते हैं। पीने के लिए मीठा। रसोई के लिए कम खारा और अन्य कामों के लिए खारा। करीब हर घर में...
More »सिमट सिमट जल भरहिं तलाबा- अनुपम मिश्र
आज हर बात की तरह पानी का राजनीति भी चल निकली है। पानी तरल है, इसलिए उसकी राजनीति भी जरूरत से ज्यादा बहने लगी है। देश का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है, जिसे प्रकृति उसके लायक पानी न देती हो, लेकिन आज दो घरों, दो गांवों, दो शहरों, दो राज्यों और दो देशों के बीच भी पानी को लेकर एक न एक लड़ाई हर जगह मिलेगी। मौसम विशेषज्ञ बताते हैं कि...
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