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अर्थशास्त्रियों-समाजशास्त्रियों ने नीति आयोग को कटघरे में खड़ा किया, PM मोदी से की सीइओ को हटाने की मांग

पटना : नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत द्वारा बिहार के कारण देश को पिछड़ा बताये जाने पर राज्य के अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने तीखी प्रतिक्रिया जतायी है. बिहार निवासी समाजशात्री-अर्थशास्त्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नीति आयोग के सीईओ को तत्काल हटाये जाने की मांग की है. मालूम हो कि मंगलवार को दिल्ली में आयोजित एक व्याख्यान के दौरान उन्होंने कहा था, ‘‘बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़,...

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कम हो रही हैं श्रमबल में महिलाएं-- अजीत रानाडे

भारत की श्रमबल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में महिलाओं का हिस्सा पिछले तेरह वर्षों के दौरान तेजी से गिरा है. यह कामकाजी उम्र की महिलाओं की कुल संख्या की तुलना में वैसी महिलाओं का अनुपात है, जो पारिश्रमिक पाते हुए रोजगार कर रही हैं. इस अनुपात में आयी गिरावट दरअसल एक अरसे के दौरान आयी है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 15 वर्ष से 24 वर्ष की महिलाओं...

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साकार होता ग्राम-स्वराज का सपना - नरेंद्र सिंह तोमर

पंचायती राज के आधुनिक इतिहास में 24 अप्रैल 1993 को लागू हुआ 73वां संविधान संशोधन विधेयक मील का पत्थर है। इस विधेयक के पारित होने के लगभग दो दशकों तक यह कछुए की गति से चलता रहा। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद इसमें तेजी आई। राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं ईमानदार कोशिश की बदौलत परवान चढ़ी पंचायती राज प्रणाली के माध्यम से ग्राम स्तर पर मौन क्रांति का सूत्रपात...

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छत्तीसगढ़ : एसटी और अल्पसंख्यक को लोन देने का लक्ष्य शून्य

मधुकर दुबे, रायपुर। रायपुर अंत्यावसायी सहकारी वित्त निगम को इस वित्तीय वर्ष 2017- 18 में एसटी और अल्पसंख्यक वर्ग को लोन देने की शासन ने हरी झंडी नहीं दी। इसके निर्धारण में अधिकृत रूप से आदिम विकास वित्त विभाग को निर्णय लिया जाना था, लेकिन विभागीय उच्चाधिकारी की दलील है कि लोन मिलेगा। वहीं अंत्यावसायी विभाग के अफसर इस बार हितग्राहियों की संख्या लक्ष्य में शून्य दर्शाया है। इसके साथ ये...

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शिक्षा के साथ कौशल भी जरूरी-- शिवम भारद्वाज

वैश्वीकरण के दौर में शिक्षा को व्यक्तित्व और क्षमता के विकास के नजरिए से देखे जाने की जरूरत है, न कि केवल नौकरी के नजरिए से। अगर क्षमता है, योग्यता है तो अवसरों की कमी नहीं होगी, जरूरत होगी केवल सतत प्रयासों की। वर्तमान में शिक्षा को केवल नौकरी से जोड़ कर देखा जाने लगा है। पाठ्यक्रम में दाखिला और फिर उसके पूरा हो जाने पर अंकतालिका और उपाधि और...

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