अकेले नहीं आता अकाल. पानी, प्रकृति और समाज के देशज चिंतक अनुपम मिश्र के लेख का यह शीर्षक अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है. कुदरत सूखा देती है, अकाल नहीं. हर चौथे-पांचवें साल हमारे देश में बारिश की कमी होती है. लेकिन जरूरी नहीं कि इससे अन्न की कमी हो, पीने के पानी का संकट हो, इंसानों और मवेशियों की जान पर बन आये, खेती-किसानी से जुड़े हर...
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सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक अभियान-- पत्रलेखा चटर्जी
क्या इस देश को एक नए नारे की जरूरत है? मेरे हिसाब से यह नारा इस तरह हो सकता है-एक विवेकशील भारत। डिजिटल इंडिया और इनोवेटिव इंडिया जैसे नारे तो देश को प्रेरित करते ही रहेंगे, लेकिन इसके समानांतर देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी अनदेखी करना बहुत खतरनाक होगा। एक तरफ तो हम लगातार आधुनिकता, विज्ञान और वैश्वीकरण की बातें करते हैं। दूसरी ओर, हमारी जनसंख्या का...
More »सूखे का साया
आखिरकार भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही निकली। उसने इस साल मानसून के कमजोर रहने का अंदेशा जताया था। तब वित्तमंत्री ने कहा था कि घबराने की बात नहीं है, हो सकता है मानसून संबंधी पूर्वानुमान गलत निकले। दरअसल, वित्तमंत्री को बाजार की चिंता सता रही थी और वे निवेशकों को आश्वस्त करना चाहते थे कि सब कुछ ठीकठाक रहेगा। पर अब मौसम संबंधी पूर्वानुमान पहले से कहीं अधिक वैज्ञानिक...
More »36 में से 23 सबडिविजन में कम हुई बारिश, कर्नाटक और तमिलनाडू में सूखे जैसे हालात
जुलाई के दौरान मानसून की कम बरसात का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक जुलाई के दौरान देशभर में सामान्य के मुकाबले करीब 13 फीसदी कम बरसात दर्ज की गई है। साथ ही पिछले हफ्ते देश की 36 में से 23 सब डिविजन में सामान्य या सामान्य से कम बारिश हुई है। इसके अलावा कर्नाटक और तमिलनाडू में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। मौसम...
More »30 साल के सबसे बड़े सूखे जैसे हालात, घट सकती है GDP की ग्रोथ रेट
नई दिल्ली। अल नीनो की वजह से कमजोर होते मानसून ने देश के कई इलाकों में सूखे जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। ऐसे में लगातार दूसरे साल फसलों के लिए मौसम प्रतिकूल हो गया है। इसका सीधा असर प्रोडक्शन से लेकर इकोनॉमी पर पड़ने की आशंका है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि करीब 30 साल बाद लगातार दूसरे साल सूखे जैसे हालात बन गए हैं। इकोनॉमिस्ट के अनुसार अगर स्थिति...
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