सुबह के आठ बज रहे हैं. 72 साल के कल्लन तेज कदमों से गांव की मुख्य सड़क की तरफ बढ़ रहे हैं. हमसे मुलाकात करने की वजह से उन्हें काफी देर हो चुकी है. वे किसी भी हाल में मऊरानीपुर (झांसी जिले का एक कस्बा) जाने वाली पहली बस छोड़ना नहीं चाहते. कल्लन ऐन वक़्त पर बस स्टैंड पहुंचते हैं. एक मिनट की देरी उन्हें दो घंटे लंबे इंतजार की...
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एक साल में 22,327 दलित महिलाएं और पुरुष सीवर की सफ़ाई करते काल के गाल में समा गए
नई दिल्ली।भाजपा के राज्यसभा सदस्य तरुण विजय ने दलित सफाईकर्मियों की पीड़ा रास में उठाई कहा कि हिन्दुस्तान में सफाई का वह काम कोई नहीं करता जो दलित लोगों को दिया जाता है। वे सीवर के मैनहोल में जाते हैं, कई बार जान भी चली जाती है लेकिन पर्याप्त मुआवजा तक नहीं मिलता, न सुरक्षा के इंतजाम हो रहे, न संतोषजनक वेतन मिल रहा।सांसद ने बुधवार को राज्यसभा में दलित...
More »सरकारी स्कूलों के शिक्षकों पर रहम करे सरकार: सांसद
नई दिल्ली। देश के ज्यादातर राज्यों में प्राइमरी व माध्यमिक शिक्षकों के साथ होने वाली ज्यादती का मामला बुधवार को संसद में उठाया गया। शिक्षकों को शिक्षण कार्य से अलग ड्यूटी लगाने को लेकर नाराजगी जताई गई। यह मुद्दा उत्तर प्रदेश के चंदौली के सांसद डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय ने लोकसभा में उठाया। शून्यकाल के दौरान उठाए गए इस मसले में बताया गया कि जनगणना, मतदाता सूची के निर्धारण, पुनरीक्षण, सहकारिता, पंचायत...
More »सपने दुलारने की बाकी कसक-- अलका कौशिक
औरतों के नाम एक दिन की रिवायत हर साल मज़बूत होती जा रही है। कभी स्कूल-कॉलेज के दिनों में यह दिन सिर्फ एक तारीख भर था जिसे रट लेना होता था आधे-एक नंबर की गारंटी की खातिर! फिर बात आगे बढ़ी, कुछ खेल-तमाशे जुड़ने लगे। लिपस्टिक-बिंदी पर छूट, पार्लरों में आफर, ड्रैस पर पेशकश और साड़ी के साथ कुछ इनाम... खर्रामा-खर्रामा महिला दिवस मनाने का चलन बढ़ता रहा। और इसी...
More »महिला दिवस की सार्थकता- वीना श्रीवास्तव
हमारे देश में पूरे वर्ष हम चाहे कुछ ना करें, लेकिन किसी ‘खास दिवस' पर ढोल जरूर पीटते हैं. हम जिसके लिए खास दिवस मनाते हैं, पूरे वर्ष उसकी धज्जियां ही क्यों ना उड़ाते रहे हों, मगर खास दिन को ‘शो ऑफ' करना नहीं भूलते. ‘फादर्स डे', ‘मदर्स डे' पर मां-पिता को विश करना और पूरे वर्ष उन्हें जली-कटी सुनाना हमारी आदत है. इसी तरह महिला दिवस भी है. हर...
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