जनसत्ता 14 मार्च, 2013: कोई भी बदलाव डरावना होता है। खासकर वैसा बदलाव, जो राजनीति और यौन भूमिका दोनों को प्रभावित करता है। सोलह दिसंबर को दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार कांड के व्यापक विरोध ने देश में एक चिनगारी सुलगा दी है। पुरुषों की हर तरह की हिंसा को खत्म करने के लिए स्त्रियों के आंदोलन की मांग लगातार होती रही है। विरोध-दर-विरोध में युवतियों का साथ युवक भी दे...
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अच्छा कानून दिखावटी अमल- सुभाष गताडे
जनसत्ता 7 मार्च, 2013: सोनिया गांधी की अगुआई में बनी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने पिछले दिनों अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को अधिक सशक्त बनाने के मकसद से सरकार के सामने अपनी सिफारिशें पेश कीं। दलितों और आदिवासियों पर सामाजिक बहिष्कार लागू करना, साझे संसाधनों के उनके इस्तेमाल पर रोक लगाना, मंदिरों में उनके प्रवेश को प्रतिबंधित करना जैसे मसलों पर कानूनी कार्रवाई करने का सुझाव इन सिफारिशों...
More »कन्या भू्रण हत्या के मामलों में त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि प्रभावी तरीके से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण परीक्षण कानून लागू करने के लिए कन्या भू्रण हत्या के मामलों में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए। इस कानून के तहत प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध है। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने गैर सरकारी संगठन वालंटियर्स हेल्थ एसोसिएशन आॅफ पंजाब की...
More »क्या विरोध का ढंग बदल सकता है- गिरिराज किशोर
जनसत्ता 5 मार्च, 2013: इक्कीस-बाईस फरवरी का भारत-बंद लगभग सफल हुआ। उसके लिए श्रमिक संगठनों को बधाई। लेकिन इस महाबंद ने मन में कई सवाल उठा दिए। बंद होते रहते हैं। दो मुख्य तर्क इनके पीछे हैं। एक, मजदूरों या कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा, और दूसरा, अपने अधिकारों की शांतिपूर्ण और सामूहिक अभिव्यक्ति। दोनों बातें अपनी जगह सही हैं। मजदूर के अधिकार का संरक्षण होना जरूरी है। लेकिन असंगठित मजदूर...
More »जुदा होना खुदा का, नुक्ते से- योगेंद्र यादव
लिखा तो था ‘खुदा’ मगर नुक्ते के फेर से बन गया ‘जुदा’. आशीष नंदी का ‘विवादास्पद बयान’ वाला मुद्दा कुल मिला कर उर्दू की इस कहावत जैसी बात थी, जिसका बतंगड़ बन गया है. जिंदगी भर समाज के हाशियाग्रस्त समूहों की हिमायत करनेवाले आशीष नंदी दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदाय के पक्ष में एक बारीक तर्क गढ़ रहे थे. बात रखते-रखते एक वाक्य में जुबान फिसल गयी. और बस, सारा मीडिया उस...
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