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मुखिया की कोशिश से बालश्रम का उन्मूलन

हजारीबाग जिले के कटकमदाग पंचायत का चयन झारखंड की 75 बाल हितैषी अगुवा पंचायत में हुआ है. उन्हें हाल ही में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर की ओर से इस संबंध में पत्र मिला है. उन्हें इससे संबंधित प्रशिक्षण के लिए रांची भी बुलाया गया है. लेकिन इस पंचायत की मुखिया प्रियंका कुमारी इस योजना के तहत अपनी पंचायत का चयन किये जाने के पहले से ही बच्चों के लिए...

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विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता

चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...

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मीडिया चालित समाज में लोकतंत्र- विपुल मुद्गल

हमने चर्चित कारपोरेट पीआर बॉस नीरा राडिया, मीडिया की नामवर हस्तियों और राजनीति के दिग्गजों की टेलीफोन की बातचीत के लीक हुए टेपों में जो कुछ सुना है वह एक मीडिया-चालित(मीडिया-आइज्ड) राजनीति की सटीक तस्वीर पेश करता है। इस प्रकरण से पता चलता है कि किस तरह से पेशेवर संवादकर्मी (प्रोफेशनल कम्युनिकेटर्स) महत्वपूर्ण नीतियों के मामलों में जनता की समझ को गढते या परिचालित करते हैं। निसंदेह...

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स्त्री अधिकार और आंबेडकर- सुजाता पारमिता

जनसत्ता 14 अप्रैल, 2014 : आंबेडकर ने कहा था, ‘मैं नहीं जानता कि इस दुनिया का क्या होगा, जब बेटियों का जन्म ही नहीं होगा। ’ स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ भीमराव आंबेडकर का सर्मपण किसी जुनून से कम नहीं था। छियासी साल पहले, अट्ठाईस जुलाई 1928 के दिन, उन्होंने बंबई विधान परिषद में स्त्रियों के लिए प्रसूति से जुड़े पहलुओं से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण विधेयक पेश किया गया था। उसका...

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पार्टी की राजनीति ने गांव की एकता को तोड़ दिया है : राधा भट्ट

गांधी और उनके ग्राम स्वराज के सपने पर नयी दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष और प्रसिद्ध गांधीवादी राधा भट्ट्र से  पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह ने बातचीत की. प्रस्तुत है  प्रमुख अंश : अक्सर इस बात पर चर्चा होती है कि भारत गांवों का देश है,  देश की प्रगति तभी संभव होगी जब गांवों की प्रगति होगी? लेकिन वास्तविकता के धरातल पर इस चर्चा को कितनी जगह मिल पायी...

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