भारत का युवा गणतंत्र संकट में है, और भारतीय मध्य-वर्ग इसमें मुखर प्रतिभागी और हाशिये पर खड़ा दर्शक बना हुआ है. इस द्वैध के कई कारण हैं. इतिहास में किसी वर्ग के लिए यह असामान्य नहीं रहा है कि वह अपने अंदर कहीं बड़ी संभावना रखता हो, लेकिन आम तौर पर उससे बेखबर हो तथा उस बड़ी भूमिका को निभाने के लिए उसकी उतनी तैयारी भी न हो. सामाजिक रूपांतरण की...
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सरकारी स्कूल से मेरिट में और निजी स्कूल खाली हाथ
रायगढ़ (निप्र)। निजी स्कूलों में आधुनिकता शिक्षा की चकाचौंध की वजह से फीस तो भारी-भरकम ली जाती है, पर पढ़ाई का स्तर निम्न होने से इनकी तुलना में सरकारी स्कूल के बच्चे अच्छी स्थिति बना रहे हैं। हालात यह है कि निजी स्कूलों की बजाए सरकारी स्कूल के बच्चे ही मेरिट में आ रहे हैं। इन स्कूलों में अत्याधुनिक सुविधाओं का अभाव होने के बावजूद निजी स्कूल के बच्चों को...
More »मॉनसून साथ न दे, तो भी अच्छी खेती करें- डा. प्रवीण कुमार द्विवेदी
झारखंड और बिहार में मॉनसून की आंखमिचौली एक तरह से स्थायी समस्या बन गयी है. इन परिस्थितियों में फसलों की बरबादी और कम उत्पादन की आशंकाएं रहती हैं. इस विषम परिस्थिति से निबटने का सही तरीका कुशल प्रबंधन है. यह प्रबंधन किसानों को करना है. इस बार मौसम पूर्वानुमान में मॉनसून का ज्यादा साथ देने की संभवना कम व्यक्त की गयी है. ऐसे में किसान संयम, समझ और जागरूकता से काम...
More »परिवर्तन के लिए पूर्वाभ्यास- प्रभु जोशी
जनसत्ता 23 मई, 2014 : इन चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया कि नरेंद्र मोदी अपने दल से बड़े हैं। वे मालवा की इस कहावत के चरितार्थ हैं कि‘दस हाथ की कंकड़ी में बीस हाथ का बीज’। उनके ऐसा ‘वैराट्य’ ग्रहण करते ही उनका दल छिलके की तरह नीचे गिर गया है। वे स्वयंसिद्ध सत्ता की उस धार में बदल चुके हैं, जिसे अब दल की पुरानी आडवाणी-अटल छाप म्यान...
More »किसानों के पैसों से गैरों को लाभ- देविंदर शर्मा
वित्तीय वर्ष 2012-13 में पांच लाख 75 हजार करोड़ रु पये कृषि कर्ज उपलब्ध कराया गया था. उसके साल भर पहले यह राशि चार लाख 75 हजार करोड़ रु पये थी. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2000 से 2010 के बीच कृषि कर्ज में 755 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वर्ष 2013-14 के बजट में वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने घोषणा की थी कि कृषि कर्ज के लिए बजट आवंटन सात...
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