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‘अगर एक आशा कार्यकर्ता 4,000 रुपये में गुज़ारा कर सकती है, तो हमारे प्रधानमंत्री क्यों नहीं’

द वायर हिंदी, 9 अक्टूबर ‘हम पिछले 60 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, क्योंकि हमें हर महीने केवल 4,000 रुपये का भुगतान किया जाता है.’ ये बात बीते 5 अक्टूबर को राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हरियाणा के झज्जर की आशा कार्यकर्ता अनीता ने कही. अनीता की आवाज 26 राज्यों की 7,000 से अधिक महिलाओं की आवाज में से एक थी, जो नरेंद्र मोदी सरकार और...

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सौर ऊर्जा वाले करघों से बदल रही है भारत के रेशम बुनकरों की ज़िंदगी

द थर्ड पोल , 27 सितम्बर  असम के कोकराझार जिले के भौरागवाजा गांव में बुधरी गोयारी, अपने आंगन में ‘एरी’ रेशम के कोकून की रीलिंग में व्यस्त हैं। रेशम के कोकून के अपने कंटेनर के पास, गोयारी, सौर ऊर्जा से चलने वाली रीलिंग मशीन के साथ बैठी हैं। बोडो जनजाति की गोयारी, भारत के आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों की उन 20,000 महिलाओं में से एक हैं, जिनके पास दिल्ली स्थित एक सामाजिक...

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कारखानों के कचरे से प्रदूषित हुआ राजस्थान का बिछड़ी गांव, 35 साल बाद भी न्याय का इंतजार

मोंगाबे हिंदी, 27 सितम्बर  बिछड़ी गांव की सड़कों पर चहलकदमी करते हुए आपको ज्यादातर घरों के बाहर रखे या खिड़कियों पर लटके हुए सभी आकार के पानी के कंटेनर दिखाई देंगे। ऐसा ही एक घर गांव में रहने वाली 50 साल की आदिवासी महिला लहरी देवी का है। उनका घर आधा बना हुआ है। टिन के शेड से ढका हुआ है। लहरी देवी का घर राजस्थान के इस गांव में प्रवेश...

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उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ की तबाही ने अवैध रेत खनन को किया उजागर

द थर्ड पोल , 27 सितम्बर जब जुलाई के पहले सप्ताह से अगस्त 2023 के आखिर तक उत्तराखंड में भारी बारिशों का दौर शुरू हुआ, कोटद्वार शहर को एक के बाद एक कई आपदाओं का सामना करना पड़ा। यहां खोह, सुखरो और मालन और पनियाली नदियां बहती हैं। नदियों में बाढ़ आई तो 13 जुलाई को मालन नदी पर बना पुल टूट गया। फिर 28 जुलाई को पनियाली नदी पर बना...

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भगियाओं की नई पीढ़ी ने अपने पेशे से मुंह मोड़ा , कच्छ में विलुप्त हो रहा मवेशियों के इलाज का पारंपरिक ज्ञान

इंडियास्पेंड, 25 सितम्बर कई साल पहले, जब कच्छ सूखे से जूझ रहा था, तो एशिया के सबसे बड़े खुले घास के मैदान बन्नी में सलीम मामा के गांव के लोगों ने और बेहतर जगह की तलाश में पलायन करना शुरू कर दिया। लेकिन सलीम मामा इनमें शामिल नहीं थे। उन्होंने गांव छोड़ने से इंकार कर दिया। सलीम ‘भगिया’ यानी वह एक ऐसे स्थानीय विशेषज्ञ थे, जिनसे बड़े पैमाने पर देहाती समुदाय...

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