देहरादून। अनियोजित विकास राज्य में जल स्रोतों के लिए संकट बनकर खड़ा हो गया है। आलम यह है कि उत्तराखंड के 53 हजार 566 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र में जलीय भूमि केवल 1.94 प्रतिशत ही शेष रही है। उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (यू-सैक) ने सेटेलाइट के जरिए यह तस्वीर दिखाई है। ‘नेशनल वेटलैंड इनवेंटरी एंड एसेसमेंट’ प्रोजेक्ट के तहत राज्य में कुल 994 प्राकृतिक जल स्रोत चिन्हित किए गए,...
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चार साल बाद भी नहीं बनी पेयजल योजना
कर्णप्रयाग, जागरण कार्यालय : गर्मियां आने को है, लेकिन विकासखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में बन रही पेयजल योजनाओं की रफ्तार धीमी है। कुछ ऐसा ही हाल बणगांव एकल पेयजल योजना का है। चार से योजना पर काम चल रहा है, लेकिन आज तक पूरा नहीं हो सका है। ग्रामीणों की मांग पर वर्ष 2006-07 में 37.41 लाख रुपये की लागत से बणगांव एकल पेयजल योजना को स्वीकृति मिली थी। इस पर जल...
More »पहाडी राज्य को आर्थिक विकास की सीढी चढायेगा आंवला
देहरादून : मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने वाला तथा शारीरिक शक्ति का स्रोत तमाम औषधीय गुणों से युक्त ‘‘आंवला’’ अब पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में न केवल किसानों बल्कि इसके उत्पाद से जुडे व्यापारियों को भी आर्थिक विकास की सीढियां चढाने में कारगर साबित होगा. राज्य औषधि पादप बोर्ड के उपाध्यक्ष डा आदित्य कुमार ने बताया कि उत्तराखंड में वर्तमान में आंवले की खेती समुद्रतल से करीब 4500 फ़ुट की उंचाई तक की जा...
More »अब तकनीक के शिकंजे में मनरेगा
देहरादून, जागरण ब्यूरो। भविष्य में महात्मा गांधी नेशनल ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट 'मनरेगा' की प्रगति तकनीकी संजाल में फंस सकती है। केंद्र सरकार भविष्य में उन्हीं राज्यों को अगली किश्तें जारी करेगी जिनका एमआईएस अपडेट होगा। यह तभी संभव है जब ग्राम पंचायत स्तर पर ऑनलाइन फीडिंग की व्यवस्था हो, जो कम से कम साल भर तक उत्तराखंड में संभव नहीं है। केंद्र से 'मनरेगा' में पैसा नहीं मिलेगा...
More »क्या सोचा क्या पाया
जिन सपनों को लेकर एक दशक पहले उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था उनमें से कितने सपने आंखों से उतरकर जमीन पर चल पाए हैं? नौ नवंबर को उत्तराखंड राज्य दस साल का हो गया. दस साल की उम्र किसी राज्य का भविष्य तय करने के लिए काफी नहीं होती, पर ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’ वाली कहावत के हिसाब से देखा जाए तो उस भविष्य का अंदाजा लगाने के...
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