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इंडिया नहीं, भारत का बजट-- अनुपम त्रिवेदी

मोदी सरकार के तीसरे बजट पर मध्यम-वर्ग की प्रतिक्रिया तीखी रही है. न आयकर छूट की सीमा में बढ़ोत्तरी हुई, न बढ़ते दामों से राहत मिली, बल्कि सेवाकर में बढ़ोत्तरी ने एनडीए सरकार के सबसे बड़े समर्थक मिडिल क्लास को जैसे विपक्षी दलों के साथ ले जाकर खड़ा कर दिया है. महंगी कारें, महंगा सोना, महंगे होटल और कर्मचारी भविष्य निधि (इपीएफ) की निकासी पर लगाये गये कर से चमकती...

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ताकि न आए 'नि:शब्द' होने की नौबत - गिरजाशंकर

प्रदेश के किसान अभी जिस बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं, उन्हें उस हाल में पहुंचाने के लिये सूखा ही जिम्मेदार नहीं। इसमें सरकारी तंत्र की नाकामियों की भी बड़ी भूमिका है। यह तथ्य हाल ही में उच्चाधिकारियों के गांव दौरे के उस अनुभव से जाहिर होता है, जिससे स्वयं मुख्यमंत्री रूबरू हुए। किसान इतने परेशान हैं कि लगभग हर दिन प्रदेश के किसी न किसी इलाके से किसानों...

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अब बेहिसाब कृषि भूमि नहीं खरीद सकेंगे निवेशक

भोपाल। प्रदेश में उद्योग और रियल इस्टेट में निवेश करने वाले अब बेहिसाब कृषि भूमि नहीं खरीद सकेंगे। यदि वे इस तरह से निवेश करते हैं तो उन पर सीलिंग एक्ट के कानून के तहत कार्रवाई होगी। इसकी वजह है 27 अप्रैल 2015 को लाया गया वह अध्यादेश जो कानून का रूप नहीं ले सका। इसे बीते मानसून सत्र में पेश करना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका, जिसके चलते...

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विकास के कोलाहल में- अरविन्द कुमार सेन

देश में सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (एसइसीसी) के अलग-अलग पहलुओं पर बहस चल रही है। कुछ जानकार इस तथ्य की तरफ इशारा कर रहे हैं कि इस जनगणना ने भारतीय अर्थव्यवस्था के कई स्याह हिस्सों पर रोशनी डाली है। विकास के कोलाहल में स्याह हिस्सों को कोई भी सरकार नहीं देखना चाहती। चाहे वह कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार रही हो, जिसने इस जनगणना के आंकड़ों को जानबूझ कर...

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किसानों की खुदकुशी के सबब- विनोद कुमार

जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...

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