जनसत्ता 7 अगस्त, 2012: मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति की रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा अधिकार के कार्यान्वयन के लिए स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग को बजट की निर्धारित राशि का केवल साठ फीसद दिया गया है। इसका मतलब यह है कि शिक्षा अधिकार योजना को इस साल पंद्रह हजार करोड़ रुपयों की कमी पडेÞगी। योजना की जरूरतों और बजटीय आबंटन के इस अंतर को देखते हुए संसदीय समिति ने...
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खाद्य सुरक्षा की खातिर - सुभाष वर्मा
जनसत्ता 5 जनवरी, 2012: पूरी दुनिया में एक सौ पचीस करोड़ से अधिक लोग भूख से त्रस्त हैं, जिनमें से एक तिहाई लोग भारत के गरीब हैं। नवीनतम वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान बहुत नीचे, इक्यासी देशों के बीच सड़सठवां है। इसलिए यह स्वागत-योग्य है कि भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला विधेयक संसद में पेश किया है। इस विधेयक में ग्रामीण इलाकों की पचहत्तर फीसद और...
More »एक सच के साथ तीन झूठ - सुनील
पिछले बीस सालों से विदेशी पूंजी की खुशामद में जन-हित और राष्ट्र-हित की बलि चढ़ाई जा रही है. भारत की सरकारें अमेरिका-यूरोप के बहुराष्ट्रीय हितों के दलालों की तरह बर्ताव कर रही है. खुदरा व्यापार में विदेशी कंपनियों को इजाजत देने पर हुए विवाद पर सफ़ाई में प्रधानमंत्री ने कहा कि फ़ैसला बहुत सोच-समझ कर लिया गया है. प्रधानमंत्री की इस बात में सच्चाई है. यह कोई एकाएक लिया फ़ैसला नहीं है....
More »अमीरी रेखा की जरूरत- सुनील
जनसत्ता 12 दिसंबर, 2011 : कुछ माह पहले जब योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दिया कि शहरों में बत्तीस रु. और गांवों में छब्बीस रु. प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर माना जाएगा, तो देश के संभ्रांत पढ़े-लिखे लोगों में और मीडिया में खलबली मच गई। अहलूवालिया से लेकर जयराम रमेश तक को सफाई में बयान देने पडे। उन्होंने यह...
More »महाशक्ति बनने की सही राह - सीताराम येचुरी
द इकोनॉमिस्ट ने भारत पर एक कवर स्टोरी की है। इसी अंक में ‘बिजनेस इन इंडिया’ पर पूरे 34 पृष्ठ की एक विशेष रिपोर्ट है। यह रिपोर्ट भारत के संबंध में कहती है कि, ‘यह एक उभरती हुई महाशक्ति है, जिसके समाज में जोश है, जिसकी फर्मो के चेहरे पर खून की लाली है और जो विश्व मंच पर चढ़ रही हैं।’ यह वास्तव में विश्व पूंजीवाद की इस इच्छा...
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