सदियों से हमारे यहां मातृशक्ति की पूजा और सम्मान की परंपरा पर गर्व किया जाता रहा है। लेकिन कुछ दिन पहले एक ऐसी घटना घटी कि मैं भीतर तक दहल गया। एक परिचित बुजुर्ग महिला अचानक करीब दो सौ किलोमीटर का सफर तय करके बदहवास हालत में अपने एक रिश्तेदार के घर पहुंची। वह बुरी तरह से दहली हुई थी। सड़सठ वर्ष की उम्र में उन्हें उनके इकलौते जवान पुत्र...
More »SEARCH RESULT
भारी गलती है यह ट्रेड वॉर-- अजीत रानाडे
इस वर्ष के प्रारंभ में दावोस में दिये अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने व्यापार संरक्षणवाद को तीन प्रमुख वैश्विक चुनौतियों में एक बताया. दरअसल, इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रतिपादित तथा अब क्रियान्वित व्यापार नीति से जोड़कर देखा जा रहा है. हाल ही में एल्युमिनियम तथा स्टील के आयात पर उनके द्वारा थोपा गया ऊंचा आयात शुल्क उनके संरक्षणवादी कदमों की शृंखला में नवीनतम कड़ी है, जिसमें आगे...
More »बच्चियों के जीने लायक बने दुनिया-- डॉ सय्यद मुबीन जेहरा
कुछ मौतों का जिक्र हमारी जबान पर इसलिए नहीं आता है कि हम अब बड़ी-बड़ी मौतों पर चिंतन करनेवाले लोग हो गये हैं और हमारे चिंतन का केंद्र बिंदु भी सिर्फ सियासी हो चुका है. इसमें समाज के लिए न तो पहले जगह थी और न ही अब है और अगर यही हालात रहे, तो आगे भी नहीं होगी! जो समाज अपने बचपन से जुड़ी समस्या को लेकर चिंतित नहीं...
More »आधी-अधूरी स्वायत्तता से साख को आंच -- विश्वनाथ सचदेव
वर्ष 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, उनके पुत्र राजीव गांधी बंगाल में किसी दूरदराज इलाके में थे। जब उन्हें यह सूचना मिली तो कहते हैं कि उन्होंने तत्काल रेडियो बीबीसी लगाकर सूचना की पुष्टि की थी। इस बात को बीबीसी की विश्वसनीयता के एक उदाहरण के रूप में याद किया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्वसनीयता के संदर्भ में लंबे अर्से तक बीबीसी द्वारा...
More »धरोहर से भी ज्यादा हैं नदियां -- वीरेंद्र कुमार पैन्यूली
राज्य अपने-अपने क्षेत्र में बहती नदियों को अपने स्वामित्व की सरकारी संपत्ति मानते रहे हैं। कई मामलों में राज्यों की जनता भी वैसी ही समझ रखती है। ऐसी संपत्ति जिसको वे तिजोरी में बंद कर सकते हैं और उसमें दूसरों की हिस्सेदारी वे ही तय करेंगे। बांधों और नहरों पर पहरे लगने और उनके लिए जंग होने की खबरें अब कोई नई बात नहीं हैं। कावेरी नदी के जल पर...
More »