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सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था- केसी त्यागी

मुजफ्फरपुर में ‘एक्यूट इंसेफेलाइटिस' नामक बीमारी से हुई बच्चों की मौत दर्दनाक घटना है. इसने सरकार और समाज दोनों को विचलित किया है. हालांकि, विशेषज्ञ अब तक इसे अज्ञात बीमारी बता रहे हैं, लेकिन चिकित्सकों ने भीषण गर्मी, कुपोषण और जागरूकता के अभाव आदि को इसका तात्कालिक कारण माना है. इस भीषण त्रासदी पर दलगत राजनीति भी हुई और मीडिया का बाजार भी गरमाया. मीडिया के एक वर्ग द्वारा राज्य...

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कम नहीं चुनाव आयोग की शक्तियां- नवीन चावला

भारत में जाति पर बहस राजनीतिक परिणामों की एक निर्धारक है। यह वर्ष 2019 के आम चुनाव सहित भारत में तमाम चुनावों की एक रोचक विशिष्टता है। यह ऐसी निर्धारक है कि मतदाताओं के बीच अति लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चुनाव अभियान में अपनी जातिगत पहचान बतानी पड़ती है। उत्तर और केंद्रीय भारत की ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों को किसी जाति या बिरादरी विशेष के लिए पहचाना जाता है।...

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दिल्ली में 80 प्रतिशत से अधिक निजी स्कूल नहीं लागू कर रहे शिक्षा का अधिकार कानून: रिपोर्ट

नयी दिल्ली: एक नई रिपोर्ट में बुधवार को दावा किया गया है कि दिल्ली में 80 प्रतिशत से अधिक निजी स्कूल शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून को लागू करने में सहभागी नहीं हैं और वे आर्थिक रूप से कमजोर तबके (ईडब्ल्यूएस) के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें भी आरक्षित नहीं कर रहे हैं. ‘ब्राइट स्पोर्ट्स: स्टेटस ऑफ सोशल इन्क्लूज़न थ्रू आरटीई' शीर्षक वाली यह रिपोर्ट एक सर्वेक्षण पर आधारित है,...

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तेरह प्वॉइंट रोस्टर का मुद्दा -- अनुज लुगुन

बातचीत के दौरान 13 प्वॉइंट रोस्टर पर कुछ विद्यार्थी यह चिंता जाहिर कर रहे थे कि यदि नियुक्तियों में इसी तरह के रोस्टर लागू होंगे, तो हमारे पढ़ने-लिखने का कोई मतलब नहीं रह जायेगा. यह व्यवस्था तो प्राचीन मनुवादी सामाजिक व्यवस्था की सूचक है, जिसमें वंचित समुदायों के समान अवसरों का निषेध किया जाता रहा है. तेरह प्वॉइंट रोस्टर को लेकर उनकी यह चिंता वाजिब है. उनकी इस चिंता...

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जीत गईं जातियां, हार गईं जातियां- जिल वर्निस

मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रमुख हिंदी भाषी प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर कांग्रेस की जीत 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से भारत में हुआ सबसे बड़ा राजनीतिक उलटफेर है। मगर नवनिर्वाचित विधायकों का जातिगत विश्लेषण यह बताता है कि इन दोनों सूबों में सत्ता का बंटवारा जिन-जिन सामाजिक समूहों में है, उनके सियासी रुतबे में इस राजनीतिक बदलाव के बावजूद कोई बड़ा फेरबदल नहीं हुआ है।...

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