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मोरों के शहर तावडू में ढूंढे नहीं मिल रहा राष्ट्रीय पक्षी

ऐतिहासिक शहर तावडू को मोरों के शहर के नाम से जाना जाता है और आपात काल के दौरान 19 माह सिंचाई विभाग के विश्रामगृह में नजर बंद रहे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मोरारजी देसाई द्वारा केन्द्र की सत्ता संभालने के बाद सिंचाई विभाग के विश्रामगृह को मोर पंख पर्यटन स्थल के नाम से परिवर्तित कर वर्ष 1978 में उसका उद्घाटन किया था। लेकिन मोर की यह प्रजाति सम्पूर्ण क्षेत्र से गायब...

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जलवायु: मौसम का पक्ष-विपक्ष-- अखिलेश आर्येंन्दु

धूप-छांव, गरमी-बरसात का आना-जाना प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी है। धरती पर जीवन के लिए ये मौसम उतने ही जरूरी हैं जितना की हमें जिंदा रहने के लिए जल और भोजन। यों तो हमारी जलवायु के हिसाब से बारह महीने में तीन मौसम-जाड़ा, गरमी और बरसात प्रमुख हैं। उनका अपना अलग रंग-ढंग है। हर मौसम की अपनी खामी और खूबी होती है। सभी मौसमों में हमें कुछ सुखद अहसास होते...

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भूजल की फिक्र किसे है-- दीपक रस्तोगी

विज्ञान पत्रिका ‘नेचर जियोसाइंस' का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि सिंधु और गंगा नदी के मैदानी क्षेत्र का तकरीबन साठ फीसद भूजल प्रदूषित हो चुका है। उसका दावा है कि चार दक्षिण एशियाई देशों में फैले इस विशाल क्षेत्र का पानी न तो पीने योग्य बचा है और न ही सिंचाई योग्य। हालत यह है कि कहीं भूजल सीमा से अधिक खारा हो चुका है तो कहीं उसमें...

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भूखे बाघों से शांति की उम्मीद क्यों? - अनिल प्रकाश जोशी

आज हम 'विश्व बाघ दिवस" दिवस मना रहे हैं, जिसका मकसद जंगली बाघों के आवास के संरक्षण और विस्तार को बढ़ावा देने के साथ-साथ बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। अच्छी बात है कि बाघ-संरक्षण के प्रयासों का असर भी दिख रहा है। एक-दो माह पूर्व ही यह खबर आई थी कि पिछले पांच साल में दुनियाभर में बाघों की संख्या 3200 से बढ़कर 3980 तक पहुंच चुकी है।...

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पशुप्रेम पर साझा सोच जरूरी-- पवन के वर्मा

हाल में पशुओं की संख्या कम करने के लिए उन्हें मारे जाने के सवाल पर मैं एक टीवी चैनल के पैनल डिस्कशन में शामिल था. पशुओं के हक के लिए मुखर रहनेवाली मेनका गांधी ने पशुओं को मारने की छूट देने को लेकर कैबिनेट साथी पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पर सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाया था. जावेड़कर ने कुछ राज्य सरकारों को ऐसे पशुओं को एक खास समयावधि तक मारने की...

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