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पर्यावरण भी हो विकास का मानक- अनिल पी जोशी

हमने विकास का सबसे बड़ा मापदंड सकल घरेलू उत्पाद की दर को माना है। किसी भी देश की प्रगति उसकी जीडीपी के आधार पर तय की जाती है। इसमें उद्योग, सुविधाएं, रियल इस्टेट बिजनेस, सेवाएं आदि मुख्य रूप से आते हैं। सही मायने में खेती को ही जीडीपी या उत्पादन की श्रेणी में आना चाहिए, क्योंकि अन्य उत्पाद हमारी सुविधाओं से जुड़े हैं, न कि आवश्यकताओं से। विकास की मौजूदा अवधारणा...

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जेब पर पड़ रहा बोझ, दो माह में 25 फीसदी महंगाई बढ़ी

रायपुर. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बाजार में खाद्य पदार्थो के दाम लगातार बढ़ रहे है। दो महीने में इनके दाम 25 फीसदी तक बढ़ गए हैं। चावल, दाल, तेल के दाम तो बढ़े ही, सब्जियों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं। व्यापारियों की मानें तो आने वाले दिनों में दाम और बढ़ने की संभावना है। खाद्य तेल व्यापारी प्रशांत धाड़ीवाल का कहना है कि सोयाबीन शिकागो से,...

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न्यूनतम समर्थन मूल्यों का संदेश- सुधीर पंवार

पिछले दिनों केंद्र्र सरकार ने कृषि लागत और मूल्य आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर 2011-12 के लिए रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की। इस घोषणा में थोड़ी देरी अवश्य हुई है, पर किसानों के पास अब भी पर्याप्त समय है कि वे इन मूल्यों के आधार पर फसलों की बुवाई का निर्णय ले सकें। वर्तमान में कृषि उत्पादों की आवश्यकता एवं उत्पादन में गंभीर असंतुलन की वजह...

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मुद्दा: गरीब की नई परिभाषा

गरीबी: सभ्य समाज के इस सबसे बड़े अभिशाप को राष्ट्रपिता गांधी जी ने हिंसा का सबसे खराब रूप कहा। करेला उस पर नीम चढ़ा कि स्थिति यह कि गरीबों को 'गरीब' न मानना। हमारे हुक्मरानों ने गरीबों की नई परिभाषा गढ़ी है। अगर आप शहर में रहकर 32 रुपये और गांव में रहकर 26 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च कर रहे हैं तो आप गरीब नहीं है। खुद को गरीब मानते...

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त्योहारी मांग से उबलने लगा तेल -- सुशील मिश्र

खाद्य तेलों की त्योहारी मांग निकलने से इस महीने अभी तक कीमतों में 6 फीसदी तक बढ़ोतरी हो चुकी है। घरेलू बाजार में जोर पकड़ती त्योहारी मांग खाद्य तेलों की कीमतों को और मजबूती प्रदान करने वाली है। घरेलू बाजार में मांग की तेजी केसाथ अंतरराष्ट्रीय बाजार की मजबूत कीमतें आने वाले दिनों में खाद्य तेलों की महंगाई को और हवा देंगी। खरीफ सीजन की बेहतर फसल को देखकर अनुमान लगाया जा रहा...

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