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आंदोलन से आगे- एन के सिंह

जनसत्ता 29 अक्टुबर, 2012: यह मानना गलत होगा कि अरविंद केजरीवाल ने बिजली के सरकार द्वारा काटे गए कनेक्शन फिर से जोड़ कर जनता को कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बरगलाया है। दरअसल, यह हमला उस मर्मस्थल पर है जिसे हम शासन करने की वैधानिकता कहते हैं। यह आघात एक सड़ी हुई व्यवस्था पर है जिस पर से जनता का विश्वास लगभग उठ चुका है। गांधी ने भी यही किया था। सविनय-अवज्ञा...

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हमारे लोकतंत्र का संकट- शिवदयाल

जनसत्ता 16 अक्टुबर, 2012: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, सवा अरब लोगों का। छह-सात प्रतिशत की दर से बढ़ती अर्थव्यवस्था। पर इसकी अधिकांश आबादी को अब तक ‘ट्रिकल डाउन’ यानी अमीरों के उपभोग से रिस कर मिलने वाले लाभ का ही आसरा है। छीजते जाते संसाधन, बिगड़ता जाता पर्यावरण, जलावतनी और विस्थापन, एक-दूसरे को काटती और खारिज करती पहचानें, लगभग एक-तिहाई से भी अधिक भूभाग सैन्यबलों के भरोसे, और इतने पर भी धन...

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संपूर्ण सत्याग्रह का अर्थ- श्री भगवान सिंह

जनसत्ता 2 अक्टुबर, 2012: महात्मा गांधी ने दुनिया को कोई नया वाद या सिद्धांत देने का दावा नहीं किया। उन्होंने तो अपने आचरण से वह मार्ग दिखाया जिस पर चल कर समस्त प्राणियों की हित-साधना की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने कहा कि ‘मेरा जीवन ही संदेश है।’ तब प्रश्न यह आता है कि इस संदेश या मार्ग को किन शब्दों के सहारे समझा जाए? जहां तक मैंने समझा है,...

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गांधी और आंबेडकर का रिश्ता- श्रीभगवान सिंह

जनसत्ता 7 जुलाई, 2012: पिछले दो-तीन दशकों का एक बड़ा राजनीतिक यथार्थ यह है कि राष्ट्रपिता के रूप में समादृत गांधी के ऊपर डॉ भीमराव आंबेडकर को न सिर्फ खड़ा करने, बल्कि गांधी को आंबेडकर और दलित विरोधी भी सिद्ध करने की कोशिश लगातार की जा रही हैं। यह सब हो रहा है आंबेडकर के नाम पर दलित राजनीति करने वाले आंबेडकरवादियों द्वारा, क्योंकि इसके जरिए उनके लिए एक समुदाय...

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अमीरी रेखा की जरूरत- सुनील

जनसत्ता 12 दिसंबर, 2011 : कुछ माह पहले जब योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दिया कि शहरों में बत्तीस रु. और गांवों में छब्बीस रु. प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर माना जाएगा, तो देश के संभ्रांत पढ़े-लिखे लोगों में और मीडिया में खलबली मच गई। अहलूवालिया से लेकर जयराम रमेश तक को सफाई में बयान देने पडे। उन्होंने यह...

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