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जलवायु हॉटस्पॉट: चक्रवातों की बढ़ती संख्या और हीट वेव्स कर रहा कच्छ के लोगों के जीवन को प्रभावित

इंडियास्पेंड, 01 जून जींस-टीशर्ट पहने और पतली मूंछ रखने वाले उमेश बारिया अब भी एक कॉलेज जाने वाले विद्यार्थी की तरह लगते हैं, लेकिन वह वास्तव में कच्छ के जखाऊ बंदरगाह पर मछलियां पकड़ते हैं। उनका परिवार पारंपरिक रूप से यही काम करता है। उमेश बचपन से ही अपने परिवार की इस काम में सहायता करते थे और अब वह ख़ुद एक नाव के मालिक हैं। 25 साल के उमेश बताते हैं,...

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भारत में 51 वर्षों के दौरान चरम मौसम से जुड़ी 573 आपदाओं में 138,377 लोगों ने अपनी जान गंवाई

डाउन टू अर्थ, 23 मई  विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने पिछले 51 वर्षों का आंकड़ा जारी करते हुए जानकारी दी है कि 1970 से 2021 के बीच भारत में जलवायु से जुड़ी 573 चरम आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान, लू, भीषण गर्मी, भूस्खलन और दावाग्नि की वजह से 138,377 लोगों ने अपनी गंवाई है।  डब्ल्यूएमओ द्वारा यह जानकारी हर चार वर्षों में होने वाली विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस में जारी किए...

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असामान्य रूप से लंबे ला नीना ने 2022 में रिकॉर्ड संख्या में लोगों को विस्थापित किया

डाउन टू अर्थ, 11 मई आपदाओं के कारण 2021 की तुलना में 2022 में विस्थापित लोगों की संख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र की प्रमुख वार्षिक रिपोर्ट आंतरिक विस्थापन 2023 पर वैश्विक रिपोर्ट (जीआरआईडी-2023) 11 मई को प्रकाशित हुई, जिसमें कहा गया है कि 3.26 करोड़ लोग आपदाओं के कारण विस्थापित हुए थे। आपदा के कारण 98 प्रतिशत विस्थापन की वजह बाढ़ और तूफान जैसी मौसम संबंधी...

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पश्चिमी विक्षोभ ने बदला अपना मिजाज, विशेषज्ञों ने जताई चिंता

डाउन टू अर्थ, 05 मई भारत में पिछले तीन साल से सर्दियों का मौसम सामान्य नहीं रहा है। इस देश में मॉनसून के बाद दूसरा सबसे अधिक नमी वाला मौसम, यानी जाड़ा असामान्य तौर पर सूखा और गर्म रहा। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, बीते साल का दिसंबर देश में अब तक का सबसे गर्म दिसंबर था। उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में पूरे साल की 30 फीसदी बारिश सर्दियों में होती...

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दुनिया भर की जलवायु पर असर डाल रहा है तिब्बती पठार की मिट्टी का तापमान

डाउन टू अर्थ, 05 मई मौसम का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। प्राकृतिक प्रणालियां इतनी जटिल हैं कि, सबसे उन्नत तकनीक से भी मौसम विज्ञानी 10 दिनों से अधिक का सटीक अनुमान नहीं लगा सकते हैं। इसलिए भविष्य में महीनों और ऋतुओं के बारे में पूर्वानुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है। फिर भी यह जलवायु विज्ञान के बढ़ते क्षेत्र पर गौर करते है जो 1980 के दशक में गंभीरता से शुरू हुआ था। इसकी शुरुआत...

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