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मल्टी ब्रांड रिटेल में 51% FDI पर कैबिनेट की मंजूरी

सरकार ने एक बड़ा फैसला करते हुए बहुब्रांड खुदरा कारोबार में 51 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को गुरुवार को मंजूरी दे दी। इससे दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में वालमार्ट जैसी बड़ी कंपनियों के मेगा स्टोर खुलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस आशय का फैसला सहयोगी दल तणमूल कांग्रेस के विरोध के बावजूद...

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महंगाई के पीछे गलत नीतियां- सी पी राय

समूचा देश आज महंगाई की समस्या से परेशान है। लेकिन सारी महंगाई अंतरराष्ट्रीय कारणों से नहीं है, जैसा कि सरकारी पक्ष बताता आ रहा है। साफ है कि 120 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाला यह देश सेंसेक्स और कुछेक लोगों को समृद्ध करने वाली नीतियों से नहीं चल सकता। कुछ तो है, जिसे हमारे तथाकथित अर्थशास्त्री नहीं समझ पा रहे हैं या नहीं समझने का नाटक कर रहे हैं या...

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अपनी त्रासदियों से आजादी के इंतजार में आदिवासी : रामचंद्र गुहा

एक साल पहले तकरीबन इन्हीं दिनों में राहुल गांधी ने ओडिशा में कुछ आदिवासियों से कहा था कि वे दिल्ली में उनकी लड़ाई लड़ेंगे। नियमगिरि के डोंगरिया कोंड आदिवासी बिसार दिए गए और अब राहुल का फोकस यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नोएडा के जाट किसानों व अन्य समूहों की ओर हो गया है। राहुल गांधी का यह व्यवहार समूचे राजनीतिक वर्ग के चरित्र को प्रदर्शित करता...

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किसान महापंचायत के लिए रावतखेड़ा में पंचायत

हिसार, जागरण संवाद केन्द्र : किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। फिर भी हिसार लोकसभा उपचुनाव का मुद्दा नहीं है। गाव रावतखेड़ा में 9 अक्तूबर को होने वाली किसान महापंचायत की तैयारी हुई पंचायत को संबोधित करते हुए किसान यूनियन फेडरेशन के प्रदेश महासचिव महेद्र सिंह गोदारा ने कहा कि आज किसान की हालत दयनीय हो गई। आसमानी संकट ने किसान की फसलों को भारी नुकसान पहुचाया है। उसकी भरपाई का कानून...

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गोदान : किसान की शोकगाथा--- . गोपाल प्रधान

  ‘गोदान’ के प्रकाशन के 75 साल पूरे हो गए हैं लेकिन भारत का देहाती जीवन आज भी लगभग उन्हीं समस्याओं और चुनौतियों से घिरा दिखता है जिनका वर्णन मुंशी प्रेमचंद के इस कालजयी उपन्यास में हुआ है. गोपाल प्रधान का आलेख    सन 1935 में लिखे होने के बावजूद प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' को पढ़ते हुए आज भी लगता है जैसे इसी समय के ग्रामीण जीवन की कथा सुन रहे हों....

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