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कोरोना वायरस संक्रमण के कुल मामले 88 लाख के पार, 41,100 नए मामले सामने आए

-द वायर, भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले 88 लाख के पार पहुंच गए, वहीं 82 लाख से अधिक लोग संक्रमण मुक्त हो चुके हैं. इसी के साथ संक्रमण से ठीक होने की राष्ट्रीय दर 93.09 प्रतिशत हो गई है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा रविवार सुबह आठ बजे जारी आंकड़ों के अनुसार, देश में कोविड-19 के 41,100 नए मामले सामने आने के बाद संक्रमण के मामले बढ़कर 8,814,579 हो गए, वहीं...

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महामारी के दौर में बहुआयामी गरीबी के चक्र में फंसे लोग, 3 से 10 साल तक पिछड़ सकते हैं विकासशील देश!

बहुआयामी गरीबी मौद्रिक यानी पैसे आधारित गरीबी नहीं है बल्कि यह गैर-मौद्रिक आधारित गरीबी है, जो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की चुनौतियों से दृढ़ता से जुड़ी है. हालाँकि पहले गरीबी को केवल मौद्रिक यानी धन आधारित गरीबी के संदर्भ में ही परिभाषित किया गया था, लेकिन अब गरीबी को लोगों के अनुभवों की जीवंत वास्तविकता और उनके द्वारा भोगे जाने वाले अनेकों अभावों से जोड़कर देखा जाता...

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बुझ रही है कुदरत की लालटेन

-डाउन टू अर्थ, मसूरी के लंडोर में रहते हुए मुझे दो साल से अधिक हो गए हैं लेकिन मैंने कभी जुगनुओं को नहीं देखा था। स्थानीय लोग बताते हैं कि उन्होंने भी पिछले दो दशकों से जुगनू नहीं देखे। दुनियाभर में जुगनुओं के गायब होने का जो ट्रेंड देखा जा रहा है, लंडोर भी उससे अछूता नहीं है। लेकिन मुझे आश्चर्य उस वक्त हुआ जब इस साल जुलाई-अगस्त के महीने में...

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कोरोना काल में बिगड़ी घुमन्तु समुदाय (Nomadic Tribe) की औरतों की स्थिति

-सबरंग, डॉ भीमराव अम्बेडकर के अनुसार “किसी भी समाज की प्रगति का आकलन उस समाज में महिलाओं की प्रगति के द्वारा किया जा सकता है” लेकिन आज भी भारतीय समाज में औरतों ख़ास कर घुमंतू समाज के औरतों की स्थिति दयनीय बनी हुई है. भारत सांस्कृतिक रूप से विविधता वाला देश है जिसमें विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोग रहते हैं. हर वर्ग में महिलाओं की स्थिति भिन्न तरीके से...

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बिहार के प्रवासी: दो वक़्त की रोटी के लिए दिल्ली में फँसी 'ज़िंदा क़ौमें'

-बीबीसी, ज़िंदा क़ौमें पाँच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं. उत्तर पूर्वी दिल्ली के सोनिया विहार में दो दिन बिताने के बाद समाजवादी नेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की कही ये बात बार-बार ज़हन में घूमती हैं. लोहिया का कहना था कि बुनियादी अधिकारों के लिए पाँच बरस तक इंतज़ार नहीं किया जा सकता लेकिन बिहार के लाखों प्रवासी न जाने कितने दशकों से इंतज़ार ही कर रहे हैं. वैसे तो बिहार के लोग पूरे...

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