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अनलॉक 1: काम पर लौटने को लेकर हम इतने डरे हुए क्यों हैं?

-बीबीसी, घर पर रहने के आदेश वापस लिए जाने लगे हैं और हममें से कई लोग काम पर लौटने लगे हैं. भारत में भी सोमवार से कई आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो रही हैं. लेकिन सामान्य दिनचर्या को फिर से शुरू करने में आपको घबराहट क्यों है? जब हमें पहली बार अपने घरों तक सीमित किया गया तब हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लौटने के ख़्वाब देखते थे. हम अपने पसंदीदा पब, थिएटर...

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कोरोना से जुड़ी आठ अफवाहें, जिनको लोगों ने बिना सोचे-समझे, धड़ल्ले से शेयर किया

-लल्लनटॉप, बिहार में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें बताया गया कि एक गाय महिला में बदल गई. उसने कहा- मैं कोरोना माता हूं. मेरी पूजा करो. आशीर्वाद लो. मैं अपने-आप चली जाऊंगी. इसके बाद झुंड बनाकर महिलाएं निकल पड़ीं. पूजा करने के लिए. उसके बाद कई वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए, जिसमें महिलाएं यही कहानी सुना रही थीं. जब से कोरोना वायरस के मामले आने शुरू हुए हैं, तब से ही...

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एकाध को छोड़, ज्यादातर राज्यों ने इस लॉकडाउन में जरूरतमंद दिव्यांगजनों को उनके हाल पर छोड़ दिया

कोविड-19 महामारी के इस दौर में दिल्ली के एक गैर-लाभकारी संगठन – नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एंप्लॉयमेंट फॉर डिस्बेल्ड पीपल (एनसीपीईडीपी) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि देश में दिव्यांगजन इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.   एनसीपीईडीपी की रिपोर्ट के अनुसार विशेष रूप से आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के दिव्यांगजन, लॉकडाउन के दौरान गंभीर कठिनाइयों से गुजर रहे थे. भोजन...

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बिल चुकाने के लिए पैसा नहीं बचा तो अस्पताल ने 80 वर्षीय मरीज बिस्तर से बांध दिया

-लोकवाणी, बिल चुकाने के लिए पैसा नहीं बचा तो अस्पताल ने 80 वर्षीय मरीज बिस्तर से बांध दिया. इन्हें मध्य प्रदेश के शाजापुर सिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. पांच दिन भर्ती रहे. परिजनों ने दो बार में 11 हजार रुपये का बिल जमा किया. अस्पताल ने 11 हजार रुपये और मांगे. बेटी ने कहा कि अब पैसा नहीं है, हमें अब घर जाने दो. इस पर अस्पताल ने कहा...

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‘ग़रीबी ऐसी है कि मेरे मरने के बाद परिवार के पास अंतिम संस्कार के पैसे भी नहीं होंगे’

द वायर,  ‘उई दिन अच्छे भले उठल रहलन. खाना बनाइके हम पूछलीं कि खा लेईं. बोलनन अभी नाहीं खाइब. नहा के खाइब. नहाइन धोइन अउर बिना कछु कहले बाहर निकल गइन. हम समझी बीड़ी लेवे गइल होइहें. जबसे घर आइल रहिस बहुते कम बाहर जाइस. कभो कभार खाली बीड़ी लेवे बाहर निकलैं. खाना परोस हम राह देख लगौं. देर होके लगी तो पता कइनी कि कहीं भाई के घर त नाहीं...

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