तवलीन सिंह जानी-मानी पत्रकार हैं. वे समय-समय पर राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक विषयों पर लगातार विभिन्न अखबारों में कॉलम लिखती हैं. हाल ही में उड़ीसा के नियमगिरि में बॉक्साईट खनन को लेकर लंबे समय से चल रहे सघर्ष के बाद जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि ग्राम सभा से बिना पूछे विकास कार्य के लिए जमीन नहीं ली जा सकती को एक ओर जहां लोकतंत्र के...
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गवर्नेस की हिलती बुनियाद- अजय सिंह
आजादी के ठीक बाद लगभग 400 आइसीएस अधिकारियों की जमात देशभर में थी. राजनीतिक तबके में इन अफसरों के खिलाफ जबरदस्त रोष था. परंतु संविधान की कुछ धाराओं की वजह से उन पर कार्रवाई नहीं हो सकती थी. सरदार पटेल ने इन अधिकारियों को सुरक्षा और सम्मान की गारंटी दी थी. अनंतसायनाम अयंगर, जो बाद में लोकसभा स्पीकर भी बने, ने पटेल के आश्वासन पर अपनी असहमति जतायी. वजह साफ...
More »लखीमपुर: महिला तस्करी की नई राजधानी- प्रियंका दुबे
रह्मपुत्र और सुबनसिरी जैसी विशाल नदियों के बीच बसा असम का लखीमपुर जिला पहली नजर में खुशहाल इलाका दिखता है. ढलानों पर पसरे चाय-बागान, दूर तक फैले धान के खेत और पानी से लबालब सैकड़ों तालाब. लेकिन सतह को थोड़ा ही कुरेदने पर इस खुशनुमा तस्वीर के पीछे की भयावह सच्चाई दिखती है. पता चलता है कि बागानों में चाय की पत्तियां तोड़ते मजदूरों और पानी में डूबे खेतों में...
More »नियमगिरि के हकदार- कमल नयन चौबे
जनसत्ता 2 अगस्त, 2013: नियमगिरि में खनन की इजाजत देने की बाबत सर्वोच्च न्यायालय ने अठारह अप्रैल को दिए अपने फैसले में ग्रामसभा की मंजूरी लेने का आदेश दिया था। इस फैसले और इसके बाद के घटनाक्रम ने जल, जंगल, जमीन पर स्थानीय समुदायों के हक की लड़ाई के कई विरोधाभासों और उपलब्धियों को उजागर किया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की मनमानी व्याख्या करते हुए ओड़िशा...
More »विकास के मॉडल पर कुछ विचार- रविभूषण
र्षों पहले गुन्नार मिर्डल ने ‘एशियन ड्रामा' में लिखा था- ‘औपनिवेशिक सत्ता-व्यवस्था के बिखराव और स्वतंत्र राष्ट्रीय राज्यों के स्वत: उभरने का यह अर्थ नहीं है कि इन भूतपूर्व उपनिवेशों में कोई बड़ा सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हो.' यह आज भी सच है. स्वतंत्र भारत में कोई बड़ा सामाजार्थिक परिवर्तन नहीं हुआ है. ब्रिटिश शासकों द्वारा निर्मित ढांचा, जिसे बदलने में नेहरू ने 1950-51 में अपनी असमर्थता प्रकट की थी और उस ‘साहस'...
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