जनसत्ता 30 मई, 2013: हमारे समकालीन सोच-विचार की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ‘गरीब' के बारे में सिर्फ ‘अमीर' (इस प्रसंग में ‘एलीट') विचार करते हैं। गरीब अपनी गरीबी के बारे में विचार करता नहीं पाया जाता। अपने बारे में इस कदर ‘विचार विहीन' होने के बारे में भी गरीब कभी नहीं बोलता। यह बात भी अमीर ही बताते हैं कि गरीब अपनी गरीबी के बारे में इस कारण विचार...
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EDMC : वृद्धावस्था पेंशन अब सीधे बैंक अकाउंट में पहुंचेगा
नई दिल्ली.वृद्धावस्था पेंशन के बंटवारे में विभागीय कर्मचारियों व पार्षदों की सांठ-गांठ की शिकायतों के बाद अब ईडीएमसी ने ईसीएस के जरिए सीधे बैंक अकांउट में इसका भुगतान करने का फैसला किया है। ईसीएस में तकनीकी खामियों के कारण पेंशन धारकों को इसके लिए अभी छह महीने तक इंतजार करना पड़ेगा। ईडीएमसी के कमिश्नर कुमार स्वामी ने सदन की बैठक में यह जानकारी देते हुए बताया कि निगम के 64...
More »कितना कम जानते हैं हमारे सांसद
समाज के विभिन्न तबकों के लिए भोजन के अधिकार को लेकर काम कर रहे हम जैसे पंद्रह युवाओं का एक समूह पिछले हफ्ते कुछ सांसदों से मिला। इसकी वजह थी, संशोधित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर उनसे चर्चा करना और इसे बेहतर बनाने का प्रयास करना। हमने तकरीबन सौ से अधिक सांसदों का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनमें से महज 20 सांसदों से ही मुलाकात हो सकी। कई सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों...
More »खाद्य-सुरक्षा बिल: संसद में नाकाम रही सरकार ला सकती है अध्यादेश
नई दिल्ली। संसद में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कराने में नाकाम रहने के बाद मनमोहन सरकार ने बुधवार को संकेत दिए कि वह इसके प्रावधानों को लागू करने के लिए अध्यादेश ला सकती है। ज्ञात रहे,खाद्य सुरक्षा विधेयक सोमवार को लोकसभा में चर्चा के लिए पेश किया गया था, लेकिन विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के कारण इसे पारित नहीं किया जा सका। इसमें 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी...
More »मजदूर के संघर्ष का प्रतीक- सिद्धेश्वर शुक्ला
सन् 1991 के बाद देश में आर्थिक सुधार के नाम पर बेतहाशा उदारीकरण की जो नीति अपनायी गयी, उसे सत्ता पक्ष और प्रमुख विपक्ष ने बड़ी मजबूती से केंद्र व राज्यों में लागू किया. उदारीकरण के दुष्परिणाम आज हमारे सामने हैं. उदारीकरण की नीतियों की वजह से न सिर्फ मजदूरों को नुकसान हुआ है, बल्कि परंपरागत उद्योग और कृषि बुरी तरह से चौपट होकर रह गये हैं. आज देश एक...
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