गुरुवार को आए चुनावी नतीजे भारतीय लोकतंत्र के लिए काफी अहम हैं। नरेंद्र मोदी, भाजपा और उनका राष्ट्रवाद अब केंद्र में एकछत्र शासन कर सकने की स्थिति में हैं। कांग्रेसवाद और क्षेत्रवाद, दोनों का एक साथ पतन हुआ है। बेशक कभी इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के लिए कहा जाता था कि वह ‘टीना' फैक्टर यानी ‘देअर इज नो अल्टरनेटिव टु इंदिरा गांधी' के कारण बार-बार जीतकर आती है,...
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‘उच्च शिक्षा पर हमला करने का मकसद सरकारों से सवाल पूछने वालों को ख़त्म करना है’
मानवाधिकारों से जुड़े पीपुल्स कमीशन ऑन श्रिंकिंग डेमोक्रेटिक स्पेस (पीसीएसडीएस) नाम के एक समूह ने देश में शिक्षा व्यवस्था और शैक्षणिक संस्थानों पर हो रहे कथित हमलों की सच्चाई जानने के लिए अप्रैल 2018 में एक समिति (जूरी) का गठन किया गया था. इस समिति में सेवानिवृत्त जस्टिस होसबेट सुरेश और जस्टिस बीजी. कोल्से पाटिल, प्रोफेसर उमा चक्रवर्ती, अमित भादुड़ी, टीके. ओमन, वासंती देवी, घनश्याम शाह, मेहर इंजीनियर और कल्पना कन्नाबीरान...
More »मुद्दों से ज्यादा प्रचार पर भरोसा-- संजय कुमार
चुनाव अभियानों का रूप-रंग हाल के वर्षों में काफी बदल चुका है। हालांकि किसी प्रत्याशी को अब अपने प्रचार के लिए निर्वाचन आयोग दो सप्ताह का ही वक्त देता है, जबकि पहले 21 दिन का समय मिलता था, लेकिन व्यावहारिक तौर पर अब चुनाव अभियान अतीत की तुलना में कहीं अधिक व्यापक हो गया है। मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिए भी आधिकारिक तौर पर चुनाव अभियान की शुरुआत पहले चरण...
More »क्या पत्रकारों को अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पत्रकारिता सीखनी होगी?- प्रशांत वर्मा
नई दिल्ली: क्या पत्रकारों को अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पत्रकारिता सीखनी होगी? ये सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि मंगलवार को कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष के रोड शो के दौरान हुई हिंसा को लेकर अमित शाह न सिर्फ़ तृणमूल कांग्रेस पर हमलावर हैं, बल्कि मीडिया से भी आहत नज़र आ रहे हैं. सिर्फ़ आहत ही नहीं बल्कि मीडिया को नसीहत भी दे रहे हैं. बता रहे हैं कि पत्रकारिता...
More »चुनावों में पीछे छूटते असली मुद्दे- आशुतोष चतुर्वेदी
पांच राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, तेलंगाना और राजस्थान में विधानसभा चुनावों पर पूरे देश की निगाहें लगी हुईं हैं. नतीजे किस करवट बैठेंगे, इसको लेकर नेताओं की धड़कनें तेज हैं. छत्तीसगढ़ में 12 नवंबर को पहले चरण का मतदान है. छत्तीसगढ़ की प्रकृति झारखंड से बहुत मिलती-जुलती है, लेकिन राजनीतिक समीकरण अलग हैं. छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश में भाजपा का दबदबा रहा है और वह पिछले पंद्रह साल से...
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