SEARCH RESULT

Total Matching Records found : 430

मोदी सरकार के आने बाद से नहीं हुआ किसानों की आमदनी का सर्वे

-न्यूजलॉन्ड्री, एक तरफ जहां केंद्र सरकार साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कर रही है वहीं दूसरी तरफ साल 2013 के बाद से राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने किसानों की आय को लेकर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है. यानी नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से किसानों की आमदनी को लेकर कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया है. बीते 8 फरवरी को कई सांसदों ने सामूहिक...

More »

फुलवारी की सब्जी बाड़ी -बाबा मायाराम

हम अपनी फुलवारी में सब्जी बाड़ी व रंग-बिरंगे फूल लगाते हैं। इसमें कई तरह की हरी भाजियां, फल व सब्जियां होती हैं। बच्चों को हरी ताजी भाजियां खिचड़ी में पकाकर खिलाते हैं, जिससे बच्चों को पोषण मिलता है। अब इस पहल में महिला समूह, पालक और किसान जुड़ गए हैं। यह परमेश्वरी व शिवकुमारी थीं, जो बिलासपुर जिले के करहीकछार गांव में फुलवारी कार्यकर्ता हैं। फुलवारी एक तरह का झूलाघर है,...

More »

जैविक सब्जियों की खेती  -बाबा मायाराम

“मैं अपनी छत पर सब्जियों की खेती करता हूं। गमले में या पुराने टूटे -फूटे टीन के डिब्बों में हरी सब्जियां लगाता हूं। पालक, मैथी, बैंगन, टमाटर, ककड़ी, लौकी, गिलकी, भिंडी लगी है। इससे हमारे परिवार को पूरे हफ्ते हरी ताजी सब्जियां मिलती हैं।” यह रोहना गांव के राजेश सामले थे, जो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में रहते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता राजेश सामले होशंगाबाद जिले की सबसे पुरानी गांधीवादी संस्था ग्राम सेवा...

More »

आत्मनिर्भर खेती की ओर - बाबा मायाराम

“पहले मैं रासायनिक खेती करता था, लेकिन इससे धीरे-धीरे मेरे खेत की मिट्टी जवाब देने लगी, उत्पादन कम होने लगा। इसके बाद मैंने जैविक खेती शुरू की। जैविक खाद व जैव कीटनाशक बनाना सीखा। खेती में अच्छा उत्पादन लिया, मिट्टी में सुधार हुआ। अब मैं दूसरों को भी जैविक खेती करने के लिए प्रशिक्षण देता हूं।” यह ओडिशा के सुदाम साहू थे, जो बरगढ़ जिले के कांटापाली गांव में रहते...

More »

मिलिए बगिया वाले बाबा से, जिन्होंने लगाए 3.5 लाख से ज्यादा पेड़

-डाउन टू अर्थ, उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के मीगनीं गांव के रहने वाले 61 साल के माताप्रसाद तिवारी बगिया वाले बाबा के नाम से लोकप्रिय हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब लोग उन्हें पागल कहने लगे थे। दरअसल 1989 में जब उनके गांव में सूखा पड़ा तो वह अपनी नौकरी छोड़कर पूरा समय वृक्षारोपड़ को देने लगे। तब गांव वालों को उनका यह प्रयास पागलपन लगता था, इसलिए...

More »

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close