-इंडिया टूडे, मुरादाबाद के हरपाल नगर चौराहे पर होप हॉस्पिटल ऐंड मैटरनिटी सेंटर में डॉ. शाजिया मोनिस ऑपरेशन थिएटर से मुस्कराते हुए निकलती हैं और बताती हैं, ‘‘आज तीन दिन बाद एक डिलिवरी हुई है.'' लॉकडाउन से पहले इस मैटरनिटी सेंटर में हर रोज तीन-चार डिलिवरी होती थी और लगभग इतना ही लीगल एबोर्शन या गर्भपात के मामले होते थे. लेकिन लॉकडाउन के बाद अचानक जच्चा-बच्चा के मामले आने कम हो...
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“नोटबंदी में जुड़वा बच्चे खत्म हो गए हम आस लगाए हैं इस बंदी में हमारा यह बच्चा बच जाए"
-न्यूजक्लिक, "हमारे चार बच्चे खत्म हो चुके हैं। नोटबंदी में जुड़वा बच्चे खत्म हो गए। हम आस लगाए हैं इस बंदी में हमारा यह बच्चा बच जाए" ये शब्द कामगार श्यामजी उपाध्याय के हैं। श्यामजी इलाहाबाद से तीस किलोमीटर दूर फूलपुर में इलेक्ट्रिशन का काम करते हैं। लॉकडाउन में दो महीने से काम बंद है, श्याम जी के पास न खाने के पैसे हैं न ही कमरे का किराया देने के लिए।...
More »‘क’ से कोरोना नहीं, ‘क’ से करुणा
-न्यूजलॉन्ड्री, अपनी रोज की चिर-परिचित दुनिया अपनी ही आंखों से बदली हुई, बदलती हुई दिखाई दे रही है. कल तक जो निजी शक्ति के घमंड में मगरूर थे आज शक्तिहीन याचक से अधिक व अलग कुछ भी बचे नहीं हैं. बच रहे हैं तो सिर्फ आंकड़े… मरने के… और मरने से अब तक बचे रहने के. कोई हाथ जोड़ कर माफी मांग रहा है जबकि उसकी सूरत व सीरत से माफी का...
More »लॉकडाउन : जो घर पहुंचने के लिए 1274 किलोमीटर के सफर पर पैदल निकल पड़े हैं!
-सत्याग्रह, सुरेश नौटियाल (बदला हुआ नाम) दिल्ली के एक नाइट क्लब में काम करते हैं. राजधानी में कोरोना वायरस के मामले बढ़ने पर बीते हफ्ते जब राज्य सरकार ने 31 मार्च तक नाइट क्लब बंद करने का आदेश दिया तो उन्होंने उत्तराखंड स्थित अपने गांव जाने की सोची. सुरेश ने दिल्ली के आईएसबीटी से बस पकड़ी और छह घंटे की यात्रा के बाद ऋषिकेश पहुंच गए. लेकिन इसी बीच उत्तराखंड सरकार ने...
More »हमें खाली-पीली 'हैप्पी विमंस डे' या महिला दिवस की बधाई सुनना अच्छा नहीं लगता
-सत्याग्रह, प्रसव का दर्द और मातृत्व का सुख तब भी था जब भाषाएं और सभ्यताएं भी विकसित नहीं हुई थीं. यानी मातृत्व का इतिहास दुनिया की किसी भी सभ्यता के इतिहास से भी पुराना है. समय-समय पर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में स्त्रीवादी लेखिकाओं ने मातृत्व के बारे में अपने विचार रखे हैं. लेकिन अपने भारतीय समाज में तमाम स्त्रीवादी आंदोलनों, विचार-विमर्श, चर्चा और लेखन के बाद भी एक बड़ी हद...
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