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मनरेगा : पांच महीनों में ही खत्म हो गया आधे से ज्यादा बजट, 'गांवों में काम की मांग बहुत ज्यादा है, लोग काम मांग रहे हैं'

-गांव कनेक्शन, "एक महीने से हमें काम नहीं मिला है, मेरे अल्लीपुर गाँव में ही कम से कम 250 लोग मनरेगा में काम करते हैं, मगर अभी कहीं काम नहीं चल रहा, लोग पंचायत में काम मांगने जाते हैं, मगर कहीं कुछ नहीं, गांवों में अभी भी मनरेगा में काम की मांग बहुत ज्यादा है, लोग काम मांग रहे हैं," सालों से मनरेगा में मजदूरी करती आ रहीं रामबेटी बताती हैं। देश...

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हर चार में से तीन ग्रामीण भारतीयों को नहीं मिल पाता पौष्टिक आहार: रिपोर्ट

-द वायर, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एक पेपर में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर चार में से तीन भारतीयों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है. बता दें कि हाल में जारी वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में भारत 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है और भूख की ‘गंभीर’ श्रेणी में है. विशेषज्ञों ने इसके लिए खराब कार्यान्वयन प्रक्रियाओं, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने का...

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मनरेगा : पांच महीनों में ही खत्म हो गया आधे से ज्यादा बजट, 'गांवों में काम की मांग बहुत ज्यादा है, लोग काम मांग रहे हैं'

-गांव कनेक्शन,"एक महीने से हमें काम नहीं मिला है, मेरे अल्लीपुर गाँव में ही कम से कम 250 लोग मनरेगा में काम करते हैं, मगर अभी कहीं काम नहीं चल रहा, लोग पंचायत में काम मांगने जाते हैं, मगर कहीं कुछ नहीं, गांवों में अभी भी मनरेगा में काम की मांग बहुत ज्यादा है, लोग काम मांग रहे हैं," सालों से मनरेगा में मजदूरी करती आ रहीं रामबेटी बताती हैं।...

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अर्थात‍ः राहत ऐसी होती है !

-इंडिया टूडे, मुंबई में दो साल तक काम करने के बाद, सि‍तंबर 2019 में कीर्ति की मेहनत कामयाब हुई, जब उसे लंदन की मर्चेंट बैंकिंग फर्म में नौकरी मिल गई. वह लंदन को समझ पाती इससे पहले कोविड आ गया. नौकरी खतरे में थी. लेकिन अप्रैल में ही उसकी कंपनी सरकार की जॉब रि‍टेंशन स्कीम (नौकरी बचाओ सब्सिडी) में शामिल हो गई. पगार कुछ कटी लेकिन नौकरी बच गई.  बहुत नुक्सान...

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लॉकडाउन से बेरोज़गार एमबीए, इंजीनियर मिट्टी ढो रहे हैं मनरेगा में

-सत्यहिंदी, कोरोना लॉकडाउन की वजह से देश में करोड़ों लोगों की रोज-रोटी छिनी, इसमें असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की तादाद सबसे ज़्यादा है। पर ऐसा नहीं है कि इसकी मार सिर्फ़ उन्हीं पर पड़ी है। पढ़े-लिखे, एअर कंडीशन्ड ऑफ़िसों में काम करने वाले लोगों की भी नौकरी गई है। इसमे वे लोग भी शामिल हैं जो इंजीनियर हैं, एमबीए हैं, जिन्होंने संघर्ष कर गाँव की ग़रीबी से निजात पाई और शहरों...

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