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आप भी शुरू करें अपना रेडियो स्टेशन- आर के नीरद

मित्रों, पिछले अंक में हमने बात कि कैसे आप भी अपना अखबार निकाल सकते हैं और उसके जरिये गांव-पंचायत में बदलाव ला सकते हैं. इस अंक में हम बात कर रहे हैं सामुदायिक रेडियो की. आप जानते हैं कि जब गांवों में अखबार नहीं पहुंचा था, तब रेडियो ही लोगों के मनोरंजन, ज्ञान और सूचना का बड़ा माध्यम था. आज भी वहां रेडियो के कार्यक्रम और समाचार सुने जाते हैं,...

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विलुप्ति की कगार पर खड़ी 250 बोली व भाषाओं में छत्‍तीसगढ़ी

बिलासपुर (निप्र)। सेंटर फॉर रिजर्वेशन ऑफ इनडेंजर लैंगवेज के संबंध में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने एक सर्वे रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इसमें भारत की ढाई सौ भाषाएं व बोलियां की विलुप्ति का खतरा बताया गया है। इसमें छत्तीसगढ़ी भी शामिल है। इसके बाद केंद्र सरकार ने यूजीसी को इन भाषाओं व बोलियों के संरक्षण करने के लिए कहा है। पिछले दिनों दिल्ली में इस मामले...

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हिन्दी के विस्थापन का दौर- प्रभु जोशी

जनसत्ता 31 जुलाई, 2014 : अगर आप हिंदी को गरियाने के लिए आगे आने का नेक इरादा रखते हैं तो फिर निश्चिंत हो जाइए कि अब आप अकेले नहीं हैं, बल्कि वित्तीय पूंजी के इस सर्वग्रासी दौर में, नई-नई विचार प्रविधियों से, उपनिवेशीकृत बनाए जा रहे, भारतीय मध्यवर्ग के बुद्धिजीवियों की एक पूरी रेवड़ आपके पीछे दौड़ी चली आने वाली है। इस अनुगामिनी भीड़ को अगर आप थोड़े अतिरिक्त उन्माद...

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जनसंख्या के बढ़ते बोझ को भोजन उपलब्ध कराने ऊपरी व शुष्क भूमि की उपयोगिता बढ़ाना है जरूरी

वैज्ञानिकों में भ्रम है कि हम उन्नत तकनीक की बात कर रहे हैं, तो पूर्व की परिस्थिति में ही सिर्फ निचली व मध्यम भूमि की उपयोगिता से काम चल जायेगा. लेकिन नयी परिस्थितियों में ऊपरी भूमि का उपयोग बढ़ाना जरूरी है. वहां ऐसी फसलें लगाने की जरूरत है जो कम पानी में और जल्दी तैयार हो जायें. जैसे मकई, मडुवा व 100 दिनों में तैयार होने वाला धान. मध्यम व निचली...

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जनसंख्या के बढ़ते बोझ को भोजन उपलब्ध कराने ऊपरी व शुष्क भूमि की उपयोगिता बढ़ाना है जरूरी

वैज्ञानिकों में भ्रम है कि हम उन्नत तकनीक की बात कर रहे हैं, तो पूर्व की परिस्थिति में ही सिर्फ निचली व मध्यम भूमि की उपयोगिता से काम चल जायेगा. लेकिन नयी परिस्थितियों में ऊपरी भूमि का उपयोग बढ़ाना जरूरी है. वहां ऐसी फसलें लगाने की जरूरत है जो कम पानी में और जल्दी तैयार हो जायें. जैसे मकई, मडुवा व 100 दिनों में तैयार होने वाला धान. मध्यम व निचली...

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