उपभोक्तावाद पर कई बेदिमाग टिप्पणियों से यह भी साफ झलकता है कि कई महानगरीय लेखकों की नजर अहं भरी है। उनकी राय है कि गांव या कसबे का बेचारा मनई पूरी तरह बाजार के हाथों की कठपुतली बन नाच रहा है। शहरी बड़े भैया लोगों का यह तर्क आगे जाकर शहरों, खासकर बड़े शहरों के उपभोक्ता को एक अनैतिक उपभोगवादी बाजार बंधु और ग्रामीण मजूर किसानों का खतरनाक वर्ग शत्रु...
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भारत में रोजगारहीन आर्थिक वृद्धि - आईएलओ की नई रिपोर्ट
जिस भारतीय अर्थव्यवस्था के बूते दक्षिण एशिया में साल 2010 तक आर्थिक-वृद्धि की रफ्तार 9 फीसदी से ज्यादा की रही और अब यानी साल 2011-12 में 7 फीसदी पर जा पहुंची है, उसके बारे में सबसे ज्यादा गौर करने लायक तथ्य क्या है ? अंतर्राष्ट्रीय श्रम-संगठन की नई रिपोर्ट ग्लोबल एम्पलॉयमेंट ट्रेन्डस् का कहना है कि बढ़ोत्तरी का यह कमाल श्रम की उत्पादकता में बढ़वार का नतीजा था ना कि...
More »घर से चलें, गंगा भरें जनांदोलन में उमड़े ग्रामीण
वाराणसी। गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत आदर्श भारतीय संघ (आभास) और शहीद भगत सिंह यूथ ब्रिगेड के घर से चलें, गंगा भरें जनांदोलन में ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी। मंडुवाडीह थाने के पास से हजारों लोगों ने बर्तनों में जल लेकर नारेबाजी करते हुए जुलूस निकाला और दशाश्वमेध घाट पर उस जल से गंगा नदी को भरा गया। इस दौरान निर्णायक आंदोलन का संकल्प...
More »आज नकद कल रियायत- शिरीष खरे की रिपोर्ट( तहलका हिन्दी)
राजस्थान में अलवर जिले के कोटकासिम ब्लॉक का यह ओजली गांव है. यहां ग्राम सेवा सहकारी समिति की उचित मूल्य की दुकान पर तीन महीने पहले तक केरोसिन के लिए उपभोक्ताओं की भीड़ जमा हो जाती थी. पर अब उसी केरोसिन के नाम पर चारों ओर सन्नाटा पसर जाता है. दुकान के कर्मचारी महावीर यादव के मुताबिक इस सन्नाटे की वजह यह है कि जिला कलेक्टर के निर्देश पर केरोसिन...
More »शिक्षक होने के मायने क्या? : सतीश झा
हाल ही की एक खबर पर बहुत कम लोगों का ध्यान गया, जबकि भारत के शैक्षिक भविष्य में दिलचस्पी रखने वाले हर व्यक्ति की रुचि उसमें होनी चाहिए। मानव संसाधन विकास मंत्री ने एक आश्चर्यजनक बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि आज देश में पांच लाख से भी अधिक ‘शिक्षक’ नौकरी की तलाश में हैं। यह बात सुनकर मैं सोच में पड़ गया कि सरकार में बैठे हमारे हुक्मरान क्या...
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