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क्या गरीबी कभी खत्म हो सकती है?- लार्ड मेघनाद देसाई

लॉर्ड मेघनाद देसाई भारतीय मूल के ब्रिटिश अर्थशास्त्री और लेबर पार्टी से जुड़े राजनीतिज्ञ हैं. वह अर्थशास्त्र के विश्वविख्यात संस्थान, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रह चुके हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. उनके 200 से ज्यादा लेख अकादमिक जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं. वह कई भारतीय व ब्रिटिश अखबारों के लिए नियमित स्तंभ लिखते हैं. 5 सितंबर 2014 को उन्होंने पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) में...

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‘हिंदी प्रदेश’ की पहचान के मायने- शैबाल गुप्ता

शैबाल गुप्ता जाने-माने अर्थशास्त्री और एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) के सदस्य सचिव हैं. पिछले दिनों इलाहाबाद स्थित गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट ने उन्हें 29वें ‘गोविंद बल्लभ पंत मेमोरियल लेक्चर' में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था. इस अवसर पर बोलने के लिए उन्होंने जो विषय चुना, उसका शीर्षक था- ‘आइडिया ऑफ द हिंदी हार्टलैंड'. हिंदी में इसे ‘हिंदी प्रदेश की धारणा' कहा जा सकता है. इस...

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मध्य वर्ग : सब कुछ है आशियाना नहीं - अभिषेक कुमार सिंह

अक्सर कहा जाता है कि पिछले एक-डेढ़ दशक से देश में मध्य वर्ग का दायरा तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि सरकार की नीतियों में उसका कहीं कोई प्रतिनिधित्व है। एक मिसाल अफोर्डेबल हाउसिंग जैसे नारे की है, जिसमें निचले तबकों की जरूरतों को तो ध्यान में रखा जा रहा है, लेकिन मध्य वर्ग उसमें कोई जगह नहीं हासिल कर पाया है। नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड...

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कोयले की कालिख का केंद्र - नीरजा चौधरी

कोयला खदान आवंटन मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने साल 1993 से लेकर 2010 के बीच की केंद्र सरकारों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की आवंटन-प्रक्रिया में कथित निष्पक्षता और पारदर्शिता की कलई खोल दी है। शीर्ष अदालत ने इस बीच के 218 कोयला ब्लॉकों के आवंटन को अवैध बताया है। इस फैसले ने उस बदतर स्थिति का खुलासा किया है, जिसमें ‘क्रोनी कैप्टिलिज्म' और ‘कमजोर नेतृत्व' एक स्तर पर...

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योजना आयोग की विदाई वेला- अनिल पद्मनाभन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग की विदाई की घोषणा कर दी है। उनकी अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार उन सारी नीतियों से मुक्ति की तरफ बढ़ रही है, जिनसे इस देश का पिछले छह दशक का राजकाज चला। दूसरी तरफ, यह भी लगता है कि सरकार के दिमाग में योजना आयोग जैसी संस्था का कोई विकल्प भी नहीं है। शुरू में ही सरकार में इसके लिए हर...

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