वे गांव लौटे तो नक्सलवादियों का निशाना बन जाएंगे और यदि राहत शिविरों में रहते हैं तो उन्हें अमानवीय परिस्थितियों के बीच ही बाकी जिंदगी गुजारनी पड़ेगी. सलवा जुडूम अभियान के दौरान बस्तर के राहत शिविरों में रहने आए हजारों ग्रामीण आदिवासी आज त्रिशंकु जैसी स्थिति में फंसे हैं. राजकुमार सोनी की रिपोर्ट कोतरापाल गांव की प्रमिला कभी 15 एकड़ खेत की मालकिन थी, लेकिन गत छह साल से वह अपने...
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मौजूदा श्रमकानूनों की समीक्षा की जरूरत: मनमोहन
नई दिल्ली, 14 फरवरी (एजेंसी) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि बाजार के मौजूदा नियामकीय ढांचे की समीक्षा की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं वह श्रम कल्याण में बिना किसी वास्तविक योगदान के विकास, रोजगार वृद्धि तथा उद्योगों की राह में आड़े तो नहीं आ रहा है। सिंह ने कहा, ‘‘ हालांकि हमारी सरकार अपने कर्मचारियोंं के हितों की रक्षा को लेकर प्रति प्रतिबद्ध...
More »खाद्य सुरक्षा की खातिर - सुभाष वर्मा
जनसत्ता 5 जनवरी, 2012: पूरी दुनिया में एक सौ पचीस करोड़ से अधिक लोग भूख से त्रस्त हैं, जिनमें से एक तिहाई लोग भारत के गरीब हैं। नवीनतम वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान बहुत नीचे, इक्यासी देशों के बीच सड़सठवां है। इसलिए यह स्वागत-योग्य है कि भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला विधेयक संसद में पेश किया है। इस विधेयक में ग्रामीण इलाकों की पचहत्तर फीसद और...
More »विकास का पैमाना क्या है- अनिल चमड़िया
जनसत्ता 3 जनवरी, 2012: विदेशी निवेश भूमंडलीकरण की नीति का हिस्सा है। इसीलिए खुदरा व्यापार को विदेशी पूंजी के हाथों में देने के केंद्र सरकार के फैसले का स्थगन परमाणु समझौते की तरह ही है। अमेरिका के साथ भारत के परमाणु समझौते की पूरी प्रक्रिया पर नजर दौड़ाएं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में कह दिया था कि सरकार के पास यही एकमात्र एजेंडा नहीं है। यूपीए-एक सरकार का...
More »सुधार पर हावी सियासत : केविन रैफर्टी
मेरे पुराने मित्र मनमोहन सिंह इस वक्त आखिर क्या सोच रहे होंगे? क्या अब समय आ गया है कि वे भारत के प्रधानमंत्री पद के दायित्व से मुक्त हो जाएं और 40 वर्षो की शीर्षस्तरीय लोकसेवा के बाद रिटायरमेंट ले लें? या क्या उन्हें और सोनिया गांधी के कांग्रेस-नीत गठबंधन को इस उम्मीद में मध्यावधि चुनाव करा लेना चाहिए कि शायद युवा राजनेता सामने आएं और अपने ताजगीभरे विचारों के साथ भारत...
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