भारत के अनेक मनोचिकित्सालय लंबे समय से विस्मृत दीन-दुखियों के लिए अंधकारपूर्ण बंदीगृह बने हुए हैं। मानवाधिकारों की सुरक्षा करने और सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के हमारे मिले-जुले रिकॉर्ड में मानसिक रूप से विकलांग लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा और उनका पुनर्वास संभवत: सबसे चिंतनीय प्रसंगों में से एक है। कुछ साल पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट सहित कई अन्य स्वतंत्र रिपोर्टो द्वारा प्रस्तुत एक सर्वेक्षण...
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मारी जायेंगी 52 हजार मुर्गियां
कल्याणी : केंद्र सरकार ने भी पश्चिम बंगाल में बर्ड फ्लू की पुष्टि कर दी है. सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों में सभी मुर्गे-मुर्गियों को नष्ट करने के आदेश दिये हैं. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तहत पशु पालन, डेयरी और मछली पालन विभागों की ओर से मंगलवार को जारी बयान में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में तेहट्ट आई ब्लॉक के दो गांवों से मिले नमूनों की जांच में...
More »पारदर्शिता को लेकर ओबामा ने की भारत की सराहना
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उभरते एवं स्थापित लोकतांत्रिक देशों से आग्रह किया है कि उन्हें अपनी सरकारों को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। इस संदर्भ में ओबामा ने भारतीय गांवों का उदाहरण दिया, जहां की आवाजें सूचना प्रौद्योगिकी के नए उपकरणों के माध्यम से ऊपर तक सुनी जा रही है। ओबामा ने कहा कि अमेरिका भी एक नया ऑनलाइन उपकरण लांच करेगा, जिसके माध्यम से अमेरिकी नागरिक अपनी...
More »वन सुरक्षा समिति के कानून में होगा परिवर्तन : वन मंत्री
नागराकाटा, संवादसूत्र : वन विभाग की गतिविधियों में आम नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए गठित वन सुरक्षा समिति यानी कि फॉरेस्ट प्रोटेक्शन कमेटी के पुराने कानून को बदलने पर राज्य सरकार विचार कर रही है। इस समिति में संबंधित विधायकों को भी शामिल करने पर विचार किया जा रहा है। वन सुरक्षा समिति के सदस्यों को सीएफसी लकड़ी की बिक्री के लाभांश की रकम सौंपने के लिए आयोजित...
More »गोदान : किसान की शोकगाथा--- . गोपाल प्रधान
‘गोदान’ के प्रकाशन के 75 साल पूरे हो गए हैं लेकिन भारत का देहाती जीवन आज भी लगभग उन्हीं समस्याओं और चुनौतियों से घिरा दिखता है जिनका वर्णन मुंशी प्रेमचंद के इस कालजयी उपन्यास में हुआ है. गोपाल प्रधान का आलेख सन 1935 में लिखे होने के बावजूद प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' को पढ़ते हुए आज भी लगता है जैसे इसी समय के ग्रामीण जीवन की कथा सुन रहे हों....
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