अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब भारत के बारे में बाकी दुनिया, विशेष रूप से पश्चिमी जगत में दो तरह की धारणाएं विद्यमान थीं। पहली धारणा यह थी कि भारत का मतलब उत्पीड़न, भुखमरी, बीमारी और बूचड़खाना है। दूसरी धारणा के रूप में भारत की छवि एक ऐसे देश की थी, जहां साधुओं, भिखारियों, सपेरों, बाघों, हाथियों और हीरे-जवाहरातों से लदे महाराजाओं की भरमार है। यही मिथकों वाला भारत था...
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गर्म हवाओं के खतरे से अब तो चेत जाएं - मिहिर आर. भट्ट
दुनिया के इतिहास में यह पांचवीं सबसे जानलेवा लू है, जिसका सामना हम इन दिनों कर रहे हैं। 2200 से ज्यादा लोगों की अब तक यह जान ले चुकी है। क्या हमें और मौतों का इंतजार है, जिसके बाद ही हम लू के खतरे का सामना करने के लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनाएंगे? ध्यान रहे कि पिछले कुछ दिनों में गर्म हवा के थपेड़ों से जितने लोगों की मौतें हुई...
More »'कैम्पस' पर बढ़ रहा है दबाव - रामचंद्र गुहा
कोई एक साल पहले जब स्मृति ईरानी को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया था, तो मैं उनकी नियुक्ति पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले लोगों में शामिल नहीं था। मैंने यूपीए सरकार के ऐसे विदेशी डिग्रीधारी एचआरडी मिनिस्टरों को देखा था, जिन्होंने अपने विभागीय दायित्वों में न के बराबर दिलचस्पी दिखाई थी। उनकी तुलना में स्मृति ईरानी कहीं ऊर्जावान और सक्रिय नजर आती थीं। उन्हें देखकर उम्मीद जगती थी कि...
More »मौत आती है पर नहीं आती - अनुराग चतुर्वेदी
'मरते हैं आरजू में मरने की/मौत आती है पर नहीं आती।" 7 मार्च 2011 को अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मुकदमे का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने मिर्जा गालिब के इस शे"र को याद किया था। सोमवार को जब अरुणा ने आखिरी सांस ली, तब काटजू ने एक बार फिर यह शे"र दोहराया। इस दर्दनाक कहानी की शुरुआत 26 नवंबर 1973 को होती...
More »चीन की विकास गाथा और हम- दिबांग
भारत के आजाद होने के दो साल बाद ही पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना बना था। 50 और 60 के दशक में भारत जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय में चीन से लगातार आगे रहा, लेकिन आज भारत की अर्थव्यवस्था दो ट्रिलियन डॉलर की है और चीन की नौ ट्रिलियन डॉलर की। देखते ही देखते शंघाई दुनिया के सबसे वैभवशाली समृद्ध शहरों में गिना जाने लगा। चीन ने 1981 से 2013...
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