-द वायर, केंद्र के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे देशव्यापी आंदोलन के बीच राज्य की कृषि मंडियों में लगने वाले टैक्स को लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ है. सत्ताधारी दल भाजपा के नेताओं एवं मंत्रियों ने नए कानूनों का समर्थन करने के लिए समय-समय पर मंडी टैक्स की आलोचना की है और नए कानून की विशेषताओं को गिनाते हुए इसके तहत इससे निजात दिलाने की बात की है. विरोध प्रदर्शनों में...
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किसान आंदोलन से देश को क्या सबक लेना चाहिए
-न्यूजलॉन्ड्री, क्या भारत के किसानों को आज पता चला है कि भारतीय झूठ पार्टी का सारा खेल नफ़रत की सौदागरी और झूठ का प्रपंच है, जो इनकी मूल संघी विचारधारा से निकलता है? ऐसा नहीं है, पता तो सबको था, पर आज वे बोलने लगे हैं. तो अब तक क्यों नहीं कह पाए थे? इस बात पर सोचना-समझना ज़रूरी है, क्योंकि किसान अपनी लड़ाई जीतेंगे और भाजपा तब भी रहेगी. दरअसल...
More »किसान आंदोलन: क्या भारत के किसान ग़रीब हो रहे हैं?
-बीबीसी, किसानों के लगातार जारी आंदोलन के बीच भारत सरकार इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि बदलाव किसानों की ज़िंदगी को बेहतर बनाएंगे. साल 2016 में प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी ने वादा किया था कि 2022 तक वो किसानों की आय को दोगुनी कर देंगे. लेकिन क्या इस बात का कोई सबूत है कि गांव में रहने वालों कि ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव आए हैं? ग्रामीण इलाकों में आय की हालत? वर्ल्ड...
More »किसान आंदोलन का समर्थन क्यों कर रहे हैं ब्रिटेन के कई सांसद
-बीबीसी, पिछले कुछ हफ़्तों से भारत में चल रहे किसान आंदोलन की तस्वीरें और वीडियो दुनियाभर में प्रकाशित की गईं. दुनिया भर के कई नेताओं और भारतीय मूल के लोगों से इनपर अपनी प्रतिक्रियाएं दीं. इस मुद्दे को ब्रिटेन की संसद में भी उठाया गया, सांसद तनमनजीन सिंह धेसी ने इससे जुड़ा सवाल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से पूछा और ब्रिटिश प्रधानमंत्री के जवाब की काफ़ी चर्चा हुई. मुद्दे से अनजान लग...
More »नागरिकों को ही ‘विपक्ष’ का विपक्षी बनाया जा रहा है!
-जनपथ, सरकार ने अब अपने ही नागरिक भी चुनना प्रारम्भ कर दिया है। सत्ताएँ जब अपने में से ही कुछ लोगों को पसंद नहीं करतीं और मजबूरीवश उन्हें देश की भौगोलिक सीमाओं से बाहर भी नहीं धकेल पातीं तो उन्हें अपने से भावनात्मक रूप से अलग करते हुए अपने ही नागरिकों का चुनाव करने लगती है। बीसवीं सदी के प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक बर्तोल्त ब्रेख़्त की 1953 में लिखी...
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