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गुजरात मॉडल का सच- कुमार प्रशांत

जनसत्ता 16 अप्रैल, 2013:नरेंद्र मोदी बार-बार प्रशासन की उस शैली की बात कहते रहे जिसे वे गुजरात-मॉडल का नाम देते हैं। क्या है यह गुजरात मॉडल? वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं और इस लंबे दौर में एकदम निर्द्वंद्व सत्ता उनके हाथ में रही है। पहले दौर में उनकी प्रशासनिक शैली की एकमात्र उपलब्धि रही कि समाज के अल्पसंख्यकों और असहमत लोगों को डरा-धमका और मार डाल कर एकदम हाशिए...

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सरकारी खरीद न होने से मंडियों में गेहूं के भाव एमएसपी से कम

विवशता - यूपी व हरियाणा के किसान अपनी उपज सस्ते दाम पर बेचने को मजबूर मंडियों में सप्लाई शाहजहांपुर मंडी में दैनिक आवक 8,000 से 10,000 क्विंटल इस मंडी में गेहूं का भाव 1,290 रुपये प्रति क्विंटल मथुरा मंडी में 2,000 क्विंटल, हरदोई मंडी में 8,000 क्विंटल सप्लाई सरकारी खरीद न होने से भाव 1,290 से 1,330 रुपये प्रति क्विंटल हरियाणा की कैथल मंडी में 2,500 क्विंटल गेहूं की आवक लेकिन एफसीआई का दावा- अभी आवक न...

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पहले बीमार किया अब इलाज के लायक नहीं छोड़ा

अंबरीश कुमार, सोनभद्र। सोनभद्र में केंद्र सरकार का उपक्रम एनटीपीसी कांग्रेस को आम आदमी से दूर ले जा रहा है। एनटीपीसी अन्य बिजलीघरों के साथ पहले पर्यावरण को चौपट कर लोगों को बीमार बना रहा है और अब उसने स्वास्थ्य सेवा को इतना महंगा कर दिया है कि आम आदमी इलाज भी नहीं करा सकता। इसे लेकर इस अंचल में आंदोलन चल रहा है। एक फरवरी, 2013 से एनटीपीसी शक्ति नगर...

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पानी के मुद्दे पर अजित पवार बोले, बांध में पानी नहीं तो क्या उसमें पेशाब कर दें

मुंबई। भयंकर सूखे से जूझ रहे किसानों का मजाक उड़ाने वाली उनकी इस टिप्पणी को लेकर बखेड़ा खड़ा हो गया। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने एक असंवेदनशील टिप्पणी करते हुए रविवार को पूछा कि बांध में अगर पानी नहीं है तो क्या हमें उसमें पेशाब करना चाहिए? केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे पवार ने शनिवार रात को पुणे के पिंपरी चिंचावाड़ के इंदापुर तहसील के एक सुदूर...

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क्या विरोध का ढंग बदल सकता है- गिरिराज किशोर

जनसत्ता 5 मार्च, 2013: इक्कीस-बाईस फरवरी का भारत-बंद लगभग सफल हुआ। उसके लिए श्रमिक संगठनों को बधाई। लेकिन इस महाबंद ने मन में कई सवाल उठा दिए। बंद होते रहते हैं। दो मुख्य तर्क इनके पीछे हैं। एक, मजदूरों या कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा, और दूसरा, अपने अधिकारों की शांतिपूर्ण और सामूहिक अभिव्यक्ति। दोनों बातें अपनी जगह सही हैं। मजदूर के अधिकार का संरक्षण होना जरूरी है। लेकिन असंगठित मजदूर...

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