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कम फीस और ज्यादा गुणवत्ता वाले शिक्षा संस्थानों का होना बेहद जरूरी क्यों है

पिछले कुछ समय से पूरे देश में कई विश्वविद्यालयों के छात्र फीसवृद्धि को लेकर उत्तेजित हैं. पड़ोसी देश पाकिस्तान तक से इसी प्रकार के विरोध-प्रदर्शनों की खबरें आ रही हैं. शासक वर्ग की ओर से इसके प्रति या तो उदासीनता दिखाई जा रही है या फिर इसे राजनीतिक रंग देकर खारिज करने की कोशिश की जा रही है. विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ नहीं कर रहे हैं...

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संस्थाओं की साख का सवाल-- जगमोहन सिंह राजपूत

शिक्षा एक ऐसी गतिशील प्रक्रिया है, जिसका निर्मल प्रवाह जीवनदायिनी धारा है। जिस समाज और सभ्यता में शिक्षा के इस महत्त्व को समझ लिया जाता है, उसकी प्रगति की राह के हर प्रकार के अवरोध दूर करने के ज्ञान और कौशल से युक्त व्यक्ति सदा आगे आ जाते हैं। आज शिक्षा की अवश्यकता किसी को भी समझानी नहीं पड़ती है। सरकारी आंकड़े गवाह हैं कि संविधान के निर्देशानुसार चौदह वर्ष...

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बाल श्रम, सरकार और समाज-- सुशील कुमार सिंह

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार बाल श्रम (प्रतिबंध और नियमन) संशोधन विधेयक-2012 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल गई है। संभव है कि आने वाले शीत सत्र में इसे संसद के समक्ष पेश किया जाएगा। यह बदलाव 1986 के कानून को न केवल परिमार्जित करने से संबंधित है, बल्कि चौदह से अठारह वर्ष की उम्र के किशोरों के काम को लेकर नई परिभाषा भी गढ़ी जा रही है।...

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गरीबों की पढ़ाई का खर्च नहीं देगी सरकार

शिमला। प्रदेश सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों के लिए तय 25 फीसदी सीटों का खर्च उठाने से साफ इनकार कर दिया है। सरकार का तर्क है कि जब डेढ़ से तीन किलोमीटर के दायरे में सरकारी स्कूल खोले गए हैं तो फिर प्रदेश सरकार निजी स्कूलों में गरीबों की पढ़ाई का खर्च क्यों उठाए। यह खर्च प्रदेश सरकार...

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दो सौ दिन पढ़ाना जरूरी, भले ही रविवार को खोलो स्कूल

रेवाड़ी. प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों को साल में कम से कम दो सौ दिन कक्षाएं लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। भले ही इसके लिए रविवार को ही क्यों न पढ़ाना पड़े। इसके अलावा एक विद्यार्थी को सप्ताह में कक्षा में 35 घंटे की उपस्थिति जरूरी होगी। इससे पहले सरकारी स्कूलों मे 180 दिन का शैक्षिक वर्ष होता था। शिक्षा निदेशालय के इन नए नियमों का पालन न करने पर संबंधित...

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